Thursday, 5 May 2011

"तोतली प्रीति क्यों गँवाई"

सुधियों
के  छितिज   से, पुरवा   वह  आई,
जन्मों  की सोई  हुई, हर पीर  उभर आई।
मौसम   का दोष नहीं,
सुधियाँ  वेहोश   नहीं।
योवन  मदहोश   हुआ,
अखियाँ  निर्दोष  नहीं।

सुधियों के सागर में, लहराती लहर आई,
जन्मों की  सोई  हुई,हर पीर उभर आई।
यादों   के दीप  जले,
अँधियारा दीप तले।
रेतीले  मीत    मिले,
मेरा     विश्वास  गले।

आशा  की मेंहदी  भीमातम  ले  आई,
जन्मों की  सोई  हुई,हर पीर उभर आई।
कैसा ये   प्यार किया ,
हर पल बेकार  जिया।
उनको एहसास   नहीं,
जीवन क्यों वार दिया।

सांसों के पनघट पर, क्यों गगरी रितवाई,
जन्मों की सोई हुईहर पीर उभर  आई।
बचपन का साथ छुटा,
भोला सा  प्यार  लुटा।
योवन   दीवार    बना,
आँखों  में  प्यार  घुटा।

योवन में आग लगे, तोतली प्रीति क्यों गंवाई,
जन्मों की  सोई हुईहर  पीर  उभर  आई।
-आनन्द  विश्वास।

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