भोर ये अँधेरा क्यों ...
भोर ये अँधेरा क्यों, ऐसा ये सबेरा क्यों,
शंकर का द्वार आज, सर्पों ने घेरा क्यों.
शंकर की प्रितमा को,
सर्पों ने सजाया है.
वीर बाल बधने को,
चक्र व्यूह रचाया है.
स्थिरता लाने को,
कोरे बहकाने को.
पतझड़ में प्यार भरा,
गीत आज गाया है.
कोरा ये ढिढोरा क्यों, सूरज का ढुंढेरा क्यों,
भोर ये अँधेरा क्यों,....................... ....
भावों के अभावों को,
मंच पर चढ़ाया है,
मरुथल के कागज पर,
नदी को बहाया है.
मानवी विचारों पर,
नदी के किनारों पर.
सभ्यता को नग्न कर,
कफन बेच खाया है.
लाश का लुटेरा क्यों, चीलों का बसेरा क्यों,
भोर ये अँधेरा क्यों,........................ ....
सूरज के वंशज को,
तिमिर आज भाया है.
स्वार्थ का नग्न - नाँच,
नयनों में समाया हैं.
कस्तूरी हिरणों को,
अनजाने चरणों को.
शतरंजी खेल का,
बगिया को उजेडा क्यों, शूलों को बिखेरा क्यों,
भोर ये अँधेरा क्यों,................................
भोर ये अँधेरा क्यों, ऐसा ये सबेरा क्यों,
शंकर का द्वार आज, सर्पों ने घेरा क्यों.
शंकर की प्रितमा को,
सर्पों ने सजाया है.
वीर बाल बधने को,
चक्र व्यूह रचाया है.
स्थिरता लाने को,
कोरे बहकाने को.
पतझड़ में प्यार भरा,
गीत आज गाया है.
कोरा ये ढिढोरा क्यों, सूरज का ढुंढेरा क्यों,
भोर ये अँधेरा क्यों,.......................
भावों के अभावों को,
मंच पर चढ़ाया है,
मरुथल के कागज पर,
नदी को बहाया है.
मानवी विचारों पर,
नदी के किनारों पर.
सभ्यता को नग्न कर,
कफन बेच खाया है.
लाश का लुटेरा क्यों, चीलों का बसेरा क्यों,
भोर ये अँधेरा क्यों,........................
सूरज के वंशज को,
तिमिर आज भाया है.
स्वार्थ का नग्न - नाँच,
नयनों में समाया हैं.
कस्तूरी हिरणों को,
अनजाने चरणों को.
शतरंजी खेल का,
मोहरा बनाया है,
बगिया को उजेडा क्यों, शूलों को बिखेरा क्यों,
भोर ये अँधेरा क्यों,................................
...आनन्द विश्वास .
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