अश्रु
गगन झकझोर दिया, क्यों ?
मेरा सीमित वातायन
था,
अपने से बस अपनापन
था।
मेरा अपनापन सब हर कर,
निज
अपनापन मेर दिया क्यों।
अश्रु
गगन झकझोर दिया क्यों।
अन व्याहे सपनों को तुमने,
अनचाहे अपनों को तुमने।
वन-वन
का वासी
था मैं तो,
स्वर्णिम
आँचल छोर दिया, क्यों।
अश्रु
गगन झकझोर दिया क्यों।
नयनों के
नीले आँगन से,
नीलम के
गीले आँचल से।
सपनों का
घर वार लूट
कर,
बरबस
रथ-पथ मोड़ दिया क्यों।
अश्रु
गगन झकझोर दिया क्यों।
किया समर्पण
मैंने किसको,
अनजाने अपनाया
किसको।
ठगनी माया
आनी जानी,
राम
भजन सब छोड़ दिया क्यों।
अश्रु
गगन झकझोर दिया क्यों।
...आनन्द विश्वास
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