कुछ मुक्तक और...
उम्र भर तो गला, और कितना गलूँ,
उम्र भर तो घुला, और कितना घुलूँ।
पूछता है जनाज़ा, चिता पर पहुँच,
उम्र भर तो जला, और कितना जलूँ।
उम्र भर तो घुला, और कितना घुलूँ।
पूछता है जनाज़ा, चिता पर पहुँच,
उम्र भर तो जला, और कितना जलूँ।
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विश्वास पर विश्वास देता जा रहा हूँ,
हर नयन की पीर लेता जा रहा हूँ।
साँस की पतवार का ले कर सहारा,
जिन्दगी की नाव खेता जा रहा हूँ।
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ह्रदय की हर कली सूखी, कि पांखों में नही मकरंद बाकी है,
ह्रदय की लाश बाकी है, कि सांसों में नहीं अब गंध बाकी है।
ह्रदय तो था तुम्हारा ही, ये सांसें भी तुम्हारे नाम कर दीं थी,
तुम्हारे प्यार की सौगंध, कि प्राणों में नहीं सौगंध बाकी है।
विश्वास पर विश्वास देता जा रहा हूँ,
हर नयन की पीर लेता जा रहा हूँ।
साँस की पतवार का ले कर सहारा,
जिन्दगी की नाव खेता जा रहा हूँ।
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ह्रदय की हर कली सूखी, कि पांखों में नही मकरंद बाकी है,
ह्रदय की लाश बाकी है, कि सांसों में नहीं अब गंध बाकी है।
ह्रदय तो था तुम्हारा ही, ये सांसें भी तुम्हारे नाम कर दीं थी,
तुम्हारे प्यार की सौगंध, कि प्राणों में नहीं सौगंध बाकी है।
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...आनन्द विश्वास.
विश्वास पर विश्वास देता जा रहा हूँ,
ReplyDeleteहर नयन की पीर लेता जा रहा हूँ.
साँस की पतवार का ले कर सहारा,
जिन्दगी की नाव खेता जा रहा हूँ.
waah
उम्र भर तो गला, और कितना गलूँ,
ReplyDeleteउम्र भर तो घुला, और कितना घुलूँ.
वाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
उम्र भर तो गला, और कितना गलूँ,
ReplyDeleteउम्र भर तो घुला, और कितना घुलूँ.
पूछता है जनाज़ा, चिता पर पहुँच,
उम्र भर तो जला, और कितना जलूँ.
....बहुत खूब ! लाज़वाब..
पूछता है जनाज़ा, चिता पर पहुँच,
ReplyDeleteउम्र भर तो जला, और कितना जलूँ.
शानदार मुक्तक... सादर बधाई...
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