कोई चाँद मन में..
कोई चाँद मन में सामने लगा है,
प्रणय - गीत मन को सुहाने लगा है।
ह्रदय के उदधि में, गहरा उतर कर,
सीप - सा तन कहीं पर नहाने लगा है।
मेघ के पालने में बिठा चाँद को ,
पवन गीत गा - गा झुलाने लगा है।
ह्रदय के सिसकते हुये घाव भर कर,
लबों से मेरा दर्द गाने लगा है।
कलई सा चटकता हुआ मन मगन हो,
पावसी चन्द्रमा को बुलाने लगा है।
-आनन्द विश्वास
No comments:
Post a Comment