Sunday, 1 May 2011

कोई चाँद मन में

कोई चाँद मन में..


कोई  चाँद   मन  में   सामने  लगा है,
प्रणय - गीत  मन  को सुहाने लगा है।

ह्रदय  के  उदधि में, गहरा  उतर कर,
सीप - सा तन कहीं पर नहाने लगा है।

मेघ  के   पालने   में  बिठा   चाँद  को ,
पवन  गीत  गा - गा  झुलाने  लगा  है।

ह्रदय के  सिसकते हुये  घाव भर  कर,
लबों   से    मेरा    दर्द   गाने   लगा  है।

कलई सा  चटकता हुआ मन मगन हो,
पावसी  चन्द्रमा   को   बुलाने  लगा  है।

                           -आनन्द विश्वास        
 

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