मैंने जाने गीत बिरह के
मैंने जाने गीत बिरह
के, मधुमासों की
आस नहीं है,
कदम-कदम पर मिली विवशता,
साँसों में विश्वास नहीं है।
छल से छला गया है जीवन,
आजीवन का था समझौता।
लहरों ने
पतवार छीन ली,
नैया जाती
खाती गोता।
किस सागर जा करूँ याचना, अब
अधरों पर प्यास नहीं है,
मैंने जाने गीत बिरह
के, मधुमासों की
आस नहीं है।
मेरे सीमित वातायन में,
अनजाने किया बसेरा।
प्रेम-भाव का दिया जलाया,
आज बुझा, कर दिया अंधेरा।
कितने सागर बह-बह निकलें, आँखों को एहसास नहीं है,
मैंने जाने गीत बिरह
के, मधुमासों की
आस नहीं है।
मरुथल में बहतीं दो नदियाँ,
कब तक प्यासा उर सींचेंगीं।
सागर से
मिलने को आतुर,
दर-दर पर कब तक भटकेंगीं।
तूफानों से लड़-लड़
जी लूँ, इतनी तो अब साँस
नहीं है,
मैंने जाने गीत बिरह
के, मधुमासों की
आस नहीं है।
विश्वासों की
लाश लिये मैं,
कब तक सपनों के संग खेलूँ।
सोई-सोई सी
प्रतिमा को,
सत्य समझ कब तक मैं बहलूँ।
मिथ्या जग में सच हों सपने, मुझको यह एहसास नहीं है,
मैंने जाने गीत बिरह
के, मधुमासों की
आस नहीं है।
...आनन्द विश्वास
...आनन्द विश्वास
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 05 - 07 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच-- 53 ..चर्चा मंच 566
कृपया टिप्पणी बॉक्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .
bahut bhawpurn likha hai.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...बधाई
ReplyDeleteमेरे सीमित वातायन में,
ReplyDeleteअनजाने आ किया बसेरा.
प्रेम भाव का दिया जलाया,
आज बुझा, कर दिया अँधेरा.
bahut hi achhi rachna
अनुपम गीत है सर,
ReplyDeleteसादर...
बहुत प्रवाहमयी सुन्दर गीत...
ReplyDeletelaybaddh sundar geet.
ReplyDeleteविश्वासों की लाश लिये मैं,
ReplyDeleteकब तक सपनों के संग खेलूँ .
सोई - सोई सी , प्रतिमा को,
सत्य समझ, कब तक मैं बहलूँ .
मिथ्या जग में सच हों सपने, मुझको यह अहसास नही है.
...बहुत सुन्दर रचना...शब्दों, भावों और लय का लाज़वाब संयोजन..
sunder lay me gunganata sa navgeet.
ReplyDeleteगुनगुना रही हूँ आपका गीत...
ReplyDeleteदूर-दूर तक ऐसा सुंदर छंद दिखाई नहीं पढता...
नमन मेरा...
भाव विभोर हूँ बस..
आभार...
विश्वासों की लाश लिये मैं,
ReplyDeleteकब तक सपनों के संग खेलूँ .
सोई - सोई सी , प्रतिमा को,
सत्य समझ, कब तक मैं बहलूँ .
Bahut Sunder Panktiyan...