यह कौन हमारे हिमगिरि पर,
जिसके हाथों में प्याला है।
क्या पता नहीं इस दुश्मन को,
इस ओर धधकती ज्वाला है।
शायद यह मित्र पढ़ोसी है,
जिसको कुछ आगे कम पड़ा।
यह मित्र नहीं यह दुश्मन है,
जो अपने आगे आज खड़ा।
ठहरो! चाऊ, चीन के शासक,
मत आगे कदम बढाओ।
साम्राज्य वाद के धोके में,
मत पूर्व प्रतिज्ञा विसराओ.
चीन देश से आ कर तुमने,
पंचशील की कसमें खाईं।
दूर हटायेंगे विनाश को,
हिंदी - चीनी भाई - भाई।
भूल गये अपने बचनों को,
जब अफीम का नशा चढ़ा।
गिरगिट सा रंग बदल डाला,
खंजर लेकर हो गया खड़ा।
तुमने सोचा हम हैं कायर,
पंचशील सिध्दांत मानते।
नहीं जानते, शिवा प्रताप के,
वीरों के गुण हम बखानते।
यदि अपनी लज्जा रखनी है,
तो वापस चीन देश को जाओ।
वरना अपने चपटे चेहरे पर,
कफ़न बांध कर आ जाओ।
शंकर समाधि में बैठे हैं,
वे आज कहीं जग जायेंगे।
उनको न जगा ऐ मूर्ख नीच,
जगती में प्रलय मचाएंगे।
वीर शिवा जी जगा खड़ा है,
राणा भी हुँकार उठा।
माता की लाज बचाने को,
चंडी का खप्पर जाग उठा।
भारत का हर जन मतवाला,
मत समझो भाल झुका देंगे।
लाशों की टाल लगा देंगे,
पर जड़ से तुझे मिटा देंगे।
बच्चा - बच्चा बलिदानी है,
जन-जन पर चढ़ी जवानी है।
आजाद रहो या मर जाओ,
भारत की रीति पुरानी है।
(रचना काल - १९६३)
-आनन्द विश्वास
जिसके हाथों में प्याला है।
क्या पता नहीं इस दुश्मन को,
इस ओर धधकती ज्वाला है।
शायद यह मित्र पढ़ोसी है,
जिसको कुछ आगे कम पड़ा।
यह मित्र नहीं यह दुश्मन है,
जो अपने आगे आज खड़ा।
ठहरो! चाऊ, चीन के शासक,
मत आगे कदम बढाओ।
साम्राज्य वाद के धोके में,
मत पूर्व प्रतिज्ञा विसराओ.
चीन देश से आ कर तुमने,
पंचशील की कसमें खाईं।
दूर हटायेंगे विनाश को,
हिंदी - चीनी भाई - भाई।
भूल गये अपने बचनों को,
जब अफीम का नशा चढ़ा।
गिरगिट सा रंग बदल डाला,
खंजर लेकर हो गया खड़ा।
तुमने सोचा हम हैं कायर,
पंचशील सिध्दांत मानते।
नहीं जानते, शिवा प्रताप के,
वीरों के गुण हम बखानते।
यदि अपनी लज्जा रखनी है,
तो वापस चीन देश को जाओ।
वरना अपने चपटे चेहरे पर,
कफ़न बांध कर आ जाओ।
शंकर समाधि में बैठे हैं,
वे आज कहीं जग जायेंगे।
उनको न जगा ऐ मूर्ख नीच,
जगती में प्रलय मचाएंगे।
वीर शिवा जी जगा खड़ा है,
राणा भी हुँकार उठा।
माता की लाज बचाने को,
चंडी का खप्पर जाग उठा।
भारत का हर जन मतवाला,
मत समझो भाल झुका देंगे।
लाशों की टाल लगा देंगे,
पर जड़ से तुझे मिटा देंगे।
बच्चा - बच्चा बलिदानी है,
जन-जन पर चढ़ी जवानी है।
आजाद रहो या मर जाओ,
भारत की रीति पुरानी है।
(रचना काल - १९६३)
-आनन्द विश्वास
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