हम मोटी चमड़ी वाले हैं, हम नहीं सुधरने वाले हैं।
चलती है सत्ता हमसे ही, हम सत्ता के रखवाले हैं।
काला धन
हमने पाया है,
मुश्किल से इसे कमाया है।
कितना लम्बा ये जाल बुना,
मुश्किल से इसे
बनाया हैं।
चुल्लू में सागर पी जायें, हम ऐसे ज़ालिम विषधर हैं।
छोटी मछली, मोटी मछली, सागर
में अजगर पाले हैं।
तुमको जो करना
है कर लो,
हमको जो करना
है कर लें।
तुम कहकर मन हल्का कर लो,
हम अपना घर
थोड़ा भर लें।
मत और न हमको तंग करो, हमसे ना कोई जंग करो।
हम अब तक खाते आये हैं, आगे भी खाने वाले हैं।
तुमको क्यों दर्द
हुआ करता,
हर जन तो यही दुआ करता।
धन-दौलत सबके घर आये,
खुशहाली घर - घर में
छाये।
तुम संग हमारे आ जाओ,पल भर में दौलत पा जाओ।
हम साथ निभाते आये हैं, हम साथ निभाने
वाले हैं।
तुम कहते हो
जिसे जेल है,
जेल नहीं है,
यही खेल है।
जनता से रक्षा
मिलती है,
फिर कड़ी सुरक्षा
मिलती है।
जिन डॉन-डकैतों से दुनियाँ, डरती है अरु थर्राती है,
उनके संग अपना मेल-जोल, वे ही तो
हमें सम्हाले हैं।
कितने दिन से तुम खाँस रहे,
मेरे भैया कुछ ले लो ना।
पकड़ो तुम मेरा हाथ सखे,
बहती गंगा, मुँह धो लो ना।
सुख-चैन तुम्हारे द्वार खड़ा, आगत का स्वागत कर लो ना,
ये दुनियाँ आनी-जानी है, हम सब भी जाने वाले हैं।
काला धन है, काला मन है,
मुँह भी तो अपना काला है।
सूरदास की कमरी अपनी,
कोई रंग न चढ़ने वाला है।
पुस्तैनी-पेढ़ी है अपनी, अपना ही सिक्का चलता है,
अपना ही जलवा यहाँ-वहाँ, बाकी सब जलने वाले हैं।
ये मंज़िल है नहीं हमारी,
ये तो सिर्फ
पड़ाव है।
सिक्का अपना चले विश्व में,
ऐसा बस अपना ख्वाब
है।
बहुत सुनी जनता की गाली और बहुत सी लम्पट बातें,
अब और न सहने वाले हैं, हम जाँच कराने वाले हैं।
-आनन्द विश्वास.
चलती है सत्ता हमसे ही, हम सत्ता के रखवाले हैं।
तुम कहकर मन हल्का कर लो,
मत और न हमको तंग करो, हमसे ना कोई जंग करो।
धन-दौलत सबके घर आये,
तुम संग हमारे आ जाओ,पल भर में दौलत पा जाओ।
जिन डॉन-डकैतों से दुनियाँ, डरती है अरु थर्राती है,
मेरे भैया कुछ ले लो ना।
पकड़ो तुम मेरा हाथ सखे,
बहती गंगा, मुँह धो लो ना।
सुख-चैन तुम्हारे द्वार खड़ा, आगत का स्वागत कर लो ना,
ये दुनियाँ आनी-जानी है, हम सब भी जाने वाले हैं।
काला धन है, काला मन है,
मुँह भी तो अपना काला है।
सूरदास की कमरी अपनी,
कोई रंग न चढ़ने वाला है।
पुस्तैनी-पेढ़ी है अपनी, अपना ही सिक्का चलता है,
अपना ही जलवा यहाँ-वहाँ, बाकी सब जलने वाले हैं।
ये मंज़िल है नहीं हमारी,
सिक्का अपना चले विश्व में,
बहुत सुनी जनता की गाली और बहुत सी लम्पट बातें,
अब और न सहने वाले हैं, हम जाँच कराने वाले हैं।
यथार्थ पर गहरी चोट करती रचना ।
ReplyDeleteये मंज़िल है नहीं हमारी,
ReplyDeleteये तो सिर्फ पड़ाव है।
" काला धन है, काला मन है,
ReplyDeleteमुँह भी तो अपना काला है। " - अपने भारत में यूँ तो एक सरकारी आँकड़े के मुताबिक़ साक्षरता लगभग 74-75% है, पर ये विवेकरहित डिग्रीधारी साक्षरता भी जाति -धर्म के कीचड़ में फंस कर खुल कर साँस नहीं ले पाती है और कई दफ़ा अपने क्षणिक स्वार्थवश भी, उन्हीं तोंदिले अवसरवादी समूह में से किसी एक का चयन करना हमारी मज़बूरी बन जाती है .. शायद ...
हमें तमाम शैक्षणिक संस्थानों में, 'एप्पों' पर आईएएस, आईपीएस, बैंकिंग, इंजीनियरिंग की तैयारी की तरह उचित नेता बनाने की भी तैयारी करवाने के बारे में सोचना चाहिए .. शायद ...
सामयिक विषयों पर गहरी पकड़ रखती हुई रचना, भ्रष्ट राजनैतिक परिवेश पर गहरा आघात करती है, प्रभावशाली लेखन - - नमन सह।
ReplyDeleteधन्यवाद, आदरणीय सान्याल जी। अपना स्नेह बनाए रखिए। आपका स्नेह ही मेरी शक्ति है। पुनः नमन।
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