Sunday, 1 May 2011

गोबर, तुम केवल गोबर हो.....


गोबर, तुम केवल गोबर हो.....

गोबर,
तुम केवल गोबर हो,
या, सारे जग की, सकल धरोहर हो.
तुम से ही निर्मित , जन -जन का जीवन.
तुम से ही निर्मित , अन्न फसल का हर कन.
तुम आदि अंत,
तुम दिक् दिगंत .
तुम प्रकृति नटी के प्राण,
तुम्हारा अभिनन्दन .
वैसे तो -
लोग तुम्हें गोबर कहते,
पर तुम, पर के लिये,
स्वयं को अर्पित करते.
माटी में मिल , माटी को कंचन कर देते.
कृषक , देश का,
होता भाग्य विधाता ,

उसी कृषक के,
तुम हो
भाग्य विधाता .
अधिक अन्न उपजा कर,
तुम, उसका भाग्य बदल देते.
और, तुम्हारे उपले-कंडे,
कलावती के घर में,
खाना रोज पकाते हैं.
तुमसे लिपे - पुते घर आँगन,
स्वास्थ्य दृष्टि से,
सर्वोत्तम कहलाते हैं.
गोबर - गैस का प्लांट तुम्हारा,
सबसे सुन्दर, सबसे प्यारा.
खेतों में देता हरियाली ,
गाँवों में देता उजियारा
भूल हुई मानव से जिसने ,
तुम्हें नहीं पहचाना.
भूल गया उपकार तुम्हारे,
खुद को ही सब कुछ माना.

           .....आनंद विश्वास


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