अपना घर अपना होता है
अपना घर अपना होता है,
ये जीवन का सपना होता है।
बड़े शहर में घर का सपना,
केवल इक सपना होता है।
बड़े भाग्य होते हैं
उनके,
जिनका घर अपना होता है।
आवक-जावक गुणा-भाग में,
जीवन भर खपना होता है।
कुछ सपने आँखों में
होते,
कुछ पूरे कुछ आधे
होते।
कहीं विवशता मजबूरी,
तो
कहीं प्यार के वादे होते।
बड़े प्यार से तिनका-तिनका,
दीवारें चिनना होता
है।
जीवन भर की आपाधापी,
इक छोटा सा घर दे पाती।
कभी-कभी ऐसी कोशिश भी,
आधी की आधी रह जाती।
दो पैसे में एक
बचाना,
आधे पेट कभी सोना होता है।
जिस घर को हम कहते अपना,
सच में तो होता है
सपना।
मिथ्या जग,
मिथ्या है माया,
कुछ भी नहीं जगत में अपना।
छोड़ झमेला चौरासी का,
आनन्द विश्वास
जहाँ मन खुशियों के सपने देखता है .... अपने घर जैसा कुछ नहीं होता
ReplyDeleteबेहतरीन भाव संयोजन लिए उत्कृष्ट प्रस्तुति।
ReplyDeleteबड़े शहर में घर का सपना,
ReplyDeleteकेवल इक सपना होता है।
बड़े भाग्य होते हैं उनके,
जिनका घर अपना होता है।
जो सुख छज्जू के चौबारे ..
सच कहीं भी जाओ लेकिन जो सुख अपने घर मिलता है वह और कहीं नहीं..
घर में महत्ता बतलाती सुन्दर प्रस्तुति...
जिस घर को हम कहते अपना,
ReplyDeleteसच में तो होता है सपना।
मिथ्या जग, मिथ्या है माया,
कुछ भी नहीं जगत में अपना।
ADHYATMIK DARSHAN SE PARIPOORN BEHAD PRABHAAVSHALI RACHANA ...SADAR BADHAI.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteलिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
आपकी प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
आपका सहज स्नेह ही तो उर्मियों में
Deleteऊर्जा और प्रेरणा प्रदान करता है।
कोटि-कोटि धन्यवाद।
आनन्द विश्वास।
वाह! बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! ख़ूबसूरत प्रस्तुती!
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