Monday 27 July 2020

"नयन नीले, वसन पीले"


नयन  नीले,  वसन  पीले,
चाहता  मन और  जी ले।
छू   हृदय   का   तार  तुमने,
प्राण    में  भर  प्यार  तुमने।
और   अंतस   में  समा कर,
मन   किया  उजियार तुमने।
चाह   होती   नेह   भीगी,
पावसी  जल धार   पीले।
चंद्र   मुख, औ चाँदनी तन,
और  निर्मल  दूध  सा  मन।
गंध     चम्पई    घोलते   हैं,
झील  जैसे   कमल  लोचन।
रूप अँटता कब नयन  में,
हारते     लोचन  लजीले।
पी   नयन का   मेह  खारा,
और   फिर  भर नेह  सारा।   
एक   उजड़े  से चमन  को,     
नेह     से    तुमने  सँवारा।
हो  गया  मन क्यूँ  हरा है,
देख   कर  ये नयन  नीले।
और   झीनी   गन्ध  देकर,
प्यार   की  सौगन्ध  देकर।
स्नेह  लिप्ता उर कमल का,
पावसी    मकरंद    दे कर।
कौन   सा  यह  मंत्र फूँका
हो     गए   नयना  हठीले।
नयन   नीले,  वसन  पीले।
चाहता  मन  और  जी  ले।
-आनन्द विश्वास



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