Monday, 30 November 2015

चलो बुहारें अपने मन को

चलो  बुहारें  अपने  मन  को,
और सँवारें  निज  जीवन को।
चलो  स्वच्छता को अपना  लें,
मन को निर्मल स्वच्छ बना लें।

देखो,  कितना गन्दा मन  है,
कितना कचरा और घुटन है।
मन  कचरे से अटा पड़ा है,
बदबू  वाला  और सड़ा  है।

घृणा  द्वेष  अम्बार यहाँ  है,
कचरा  फैला यहाँ  वहाँ है।
मन की सारी गलियाँ देखो,
गंध  मारती नलियाँ  देखो।

घायल  मन  की  आहें देखो,
कुछ  बनने  की  चाहें  देखो।
राग  द्वेष  के  बीहड़  जंगल,
जातिवाद के अनगिन दंगल।

फन  फैलाए   काले  विषधर,
सृष्टि निगल जाने  को तत्पर।
मेरे   मन   में,  तेरे   मन  में,
सारे जग के हर इक मन में।

शब्द-वाण से आहत  मन में,
कहीं  बिलखते बेवश मन में।
ढाई  आखर  को   भरना  है,
काम कठिन है पर करना है।
-आनन्द विश्वास

Thursday, 19 November 2015

हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई

हिन्दू  मुस्लिम  सिख  इसाई,
ये सब  क्या है,  बोलो  भाई।
उसने  तो   इन्सान   बनाया,
किसने  ऐसी   चाल  चलाई।

हिन्दू क्या है, मुस्लिम क्या है,
किसने   खोदी   ऐसी   खाई।
सबको मिल जुलकर रहना था,
फिर किसने  नफ़रत  फैलाई।

एक धरा  है  एक  गगन  है,
एक   खुदा  के बन्दे,  भाई।
एक  मनुज है, एक खून है,
सारे    इन्सां   भाई - भाई।

खून,  नसों में  बहता  अच्छा,
किसने   खूनी - नदी  बहाई।
हरे  रंग  की   सुन्दर  धरती,
क्यों कर इसको लाल रंगाई।

जगह-जगह  सन्नाटा  पसरा,
किसने भय-मय हवा चलाई।
प्रेम  रंग  है   सबसे  अच्छा, 
प्रेम   रंग   में  रंगो  खुदाई।
***
-आनन्द विश्वास

Monday, 16 November 2015

गाँधी जी के बन्दर तीन

गाँधी  जी  के  बन्दर  तीन,
तीनों   बन्दर  बड़े  प्रवीन।
खुश हो बोला पहला बन्दा,
ना मैं  गूँगा, बहरा, अन्धा।

पर  मैं  अच्छा  ही  देखूँगा,
मन को  गन्दा नहीं करूँगा।
तभी उछल कर दूजा बोला,
उसने राज़ स्वयं का खोला।

अच्छी-अच्छी  बात सुनूँगा,
गन्दा  मन  ना  होने  दूँगा।
सुनो, सुनाऊँ  मन की आज,
ये  बापू  के  मन  का  राज़।

जो   देखोगे    और   सुनोगे,
वैसे  ही  तुम  सभी  बनोगे।
हमको  अच्छा  ही बनना है,
मन को अच्छा ही रखना है।

अच्छा  दर्शन, अच्छा जीवन,
सुन्दरता से भर लो तन-मन।
सोच समझकर तीजा बोला,
मन में जो था, वो ही बोला।

आँख कान से मनुज गृहणकर,
ज्ञान संजोता  मन के अन्दर।
मुख से, जो भी मन में होता,
वो ही तो, वह बोला करता।

अच्छा बोलो जब भी बोलो,
शब्द-शब्द को पहले तोलो।
मधुर  बचन  सबको भाते हैं,
सबके   प्यारे   हो  जाते  हैं।
-आनन्द विश्वास

Wednesday, 11 November 2015

जगमग सबकी मने दिवाली

जग-मग सबकी मने दिवाली,
खुशी उछालें  भर-भर थाली।
खील खिलौने और  बताशे,
खूब   बजाएं   बाजे   ताशे।

ज्योति-पर्व है,ज्योति जलाएं,
मन के  तम को  दूर  भगाएं।
दीप जलाएं  सबके  घर पर,
जो नम  आँखें उनके घर पर।

हर मन में  जब दीप जलेगा,
तभी  दिवाली  पर्व  मनेगा।
खुशियाँ सबको घर-घर बाँटें,
तिमिर कुहासा मन का छाँटें।

धूम  धड़ाका   खुशी  मनाएं,
सभी जगह पर दीप जलाएं।
ऐसा  कोई   कोना   हो  ना,
जिसमें जलता दीप दिखे ना।

देखो, ऊपर  नभ  में  थाली,
चन्दा के घर  मनी दिवाली।
देखो,  ढ़ेरों   दीप   जले  हैं,
नहीं  पटाखे  वहाँ  चले  हैं।

कैसी  सुन्दर  हवा  वहाँ  है,
बोलो  कैसी  हवा  यहाँ  है।
सुनो,  पटाखे   नहीं चलाएं,
धुआँ, धुन्ध  से मुक्ति  पाएं।

-आनन्द विश्वास