गाँधी जी के बन्दर तीन,
तीनों बन्दर बड़े प्रवीन।
खुश हो बोला पहला बन्दा,
ना मैं गूँगा, बहरा, अन्धा।
पर मैं अच्छा
ही देखूँगा,
मन को गन्दा नहीं करूँगा।
तभी उछल कर दूजा बोला,
उसने राज़ स्वयं का खोला।
अच्छी-अच्छी बात सुनूँगा,
गन्दा मन ना होने दूँगा।
सुनो, सुनाऊँ मन की
आज,
ये बापू के
मन का राज़।
जो देखोगे और सुनोगे,
वैसे ही तुम सभी बनोगे।
हमको अच्छा ही बनना है,
मन को अच्छा ही रखना है।
अच्छा दर्शन, अच्छा जीवन,
सुन्दरता से भर लो तन-मन।
सोच समझकर तीजा बोला,
मन में जो था, वो ही बोला।
आँख कान से मनुज गृहणकर,
ज्ञान संजोता मन के अन्दर।
मुख से, जो भी मन में होता,
वो ही तो, वह बोला करता।
अच्छा बोलो जब भी बोलो,
शब्द-शब्द को पहले तोलो।
मधुर बचन सबको
भाते हैं,
सबके प्यारे हो जाते
हैं।
-आनन्द विश्वास
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (18-11-2015) को "ज़िंदगी है रक़ीब सी गुज़री" (चर्चा-अंक 2164) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर सन्देश परक बाल रचना ...
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