बहुत दिनों से देवम और उसकी मम्मी
की इच्छा सोमनाथ-दर्शन की हो रही थी। पर कभी तो देवम के पापा के ऑफिस का काम, तो कभी देवम की पढ़ाई। बस, प्रोग्राम बन ही नहीं
पाता था।
पर इस बार तो सभी रास्ते साफ थे।
कोई भी रुकाबट नहीं थी और ऊपर से श्रावण मास। उस ऊपर वाले की लीला ही निराली है।
वैसे भी जब भोले बुलाते हैं तो कोई मुश्किल आती भी नहीं है और उनकी इच्छा के बिना
तो पत्ता भी नहीं हिल पाता तो फिर आदमी की तो बिसात ही क्या है। सच में-“जेहि विधि राखे राम, तेहि विधि रहिए।”
आश्रम ऐक्सप्रेस ट्रेन का तत्काल
में रिज़र्बेशन कराया गया और टिकट कन्फर्म भी हो गये।
सभी जरूरी सामान और कपड़े अटेची और
बैग में जमा लिये गये। देवम के पापा भी आज ऑफिस से दो बजे तक घर आ गये। देवम के
पापा-मम्मी और देवम तैयार होकर लगभग ढाई बजे दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुँच गये।
रेलवे स्टेशन पहुँच कर देवम के पापा
को ट्रेन और सीट का पता चलाने में कोई परेशानी नहीं हुई। एस-2 स्लीपर कोच में तीन
बर्थ थीं, देवम परिवार की। सभी सामान सीट पर व्यवस्थित कर लिया। देवम खिड़की के
पास में बैठ गया और वैसे भी बच्चों को तो खासकर खिड़की के पास बैठना ही अधिक अच्छा
लगता है। गाड़ी चलने में तो अभी काफी देर थी पर पहले पहुँचना ठीक ही रहता है।
सामने वाली सीट पर दो सज्जन लगभग
तीस-बत्तीस साल के होंगे,
उन्हें पहुँचाने के लिये तीन चार लोग भी आये हुये थे। उनके पास
सामान के नाम पर तो बस दो ब्रीफ-केस ही थे सो उन्होंने अपनी बर्थ पर ही रख लिये
थे।
कुछ व्यक्तियों में चुम्बकीय-आकर्षण
होता ही है। जिन्हें देख कर उनसे बात करने की इच्छा होती है और कोई व्यक्ति, जिसने आपका कुछ भी न बिगाड़ा हो, फिर भी उससे घृणा
होती है और उससे दूर हट जाने की इच्छा होती है। मन की कैमिस्ट्री ही कुछ अलग होती
है। ये तो मन ही जाने।
देवम का मिलनसार स्वभाव और आकर्षक
व्यक्तित्व अपने आप ही सबको अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता रखता है।
सामने वाले सज्जन ने देवम से पूछ ही
लिया-“आप कहाँ जा रहे हैं?”
“हम यहाँ से अहमदाबाद जायेंगे और
फिर वहाँ से सोमनाथ, देव-दर्शन के लिये।” देवम ने बताया।
“और आप कहाँ जा रहे हैं, अंकल?” देवम ने पूछा।
“हम भी यहाँ से अहमदाबाद जायेंगे
और फिर वहाँ से मुम्बई जाना है।” अंकल का उत्तर था।
“क्या नाम है, तुम्हारा? बड़े प्यारे लगते हो।” उनमें से एक ने पूछा।
“देवम, और
आपका अंकल?” देवम ने उत्तर के साथ ही प्रश्न कर दिया।
“मेरा नाम शिवपाल सिंह और इनका
राजपाल सिंह है और हम लोग मेरठ के रहने वाले हैं।” उनमें से
एक ने उत्तर दिया।
थोड़ी देर तक वार्तालाप का दौर चला।
गाड़ी का सिगनल हुआ, गार्ड साहब ने झंडी दिखा कर सीटी बजाई और गाड़ी चल दी। देवम
बाहर का मन मोहक दृश्य देखने लगा।
एक के बाद एक स्टेशन आते रहे और
जाते रहे। गाड़ी की गति कभी धीमी कभी तेज। जिन्दगी की तरह, कभी धीमी और कभी तेज।
किसी स्टेशन पर दो मिनट तो कहीं दस
मिनट रुकती और फिर चल देती। अपनी मंज़िल की ओर। सभी को अपनी-अपनी मंज़िल तक पहुँचाने
के लिए।
टी.सी. बाबू आये। सभी के टिकट चैक
किये। सभी सही यात्री थे फालतू का कोई भी नहीं। थोड़े बहुत जो लोकल पैसिन्जर थे, वे भी उतर चुके थे।
दोसा स्टेशन पर गाड़ी रुकी तो सामने
वाले शिवपाल अंकल प्लेटफार्म पर उतरे, बिजली के खम्भे के
नीचे खड़ा एक आदमी, जो शायद इनका ही इन्तज़ार कर रहा था,
से कुछ बात की और फिर उसके पास से बैग लेकर, अपनी
सीट पर आकर बैठ गये। बैग को सीट के नीचे रख दिया। देवम को कुछ अटपटा सा लगा,
शंका भी हुई। आखिर कौन था जो अंकल को अपना बैग देकर चला गया?
गाड़ी अपनी मंज़िल की ओर पल-पल
बढ़ती जा रही थी। आखिर उसे भी तो सभी को अपनी-अपनी मंज़िल तक पहँचाना था। कभी कोई
छोटा स्टेशन आता,
चाय-गरम, चाय-गरम तो कभी ठंडा पानी की आवाज
आती और फिर गाड़ी की रफ्तार बढ़ती तो आवाज बन्द हो जाती। गतिशील गाड़ी दौड़ने लगती
अपनी अगली मंज़िल की ओर।
गाड़ी जयपुर रुकी। यहाँ पर लगभग दस
मिनट का स्टोपेज था। देवम के पापा गाड़ी से नीचे उतरे प्लेटफार्म पर थोड़ा चहल
कदमी करने और कुछ नाश्ता लेने के लिए भी।
देवम के मन में विचार आया कि वह
पापा से अंकल-चिप्स लाने के लिए सामने वाले शिवपाल अंकल के मोबाइल से बोल दे। ताकि
इनका मोबाइल नम्बर पापा के मोबाइल में आ जायेगा।
उसने बड़ी चतुराई से सामने वाले
शिवपाल अंकल से कहा-“अंकल, जरा एक फोन करूँ? पापा
को।”
“हाँ हाँ, क्यों
नहीं।” उन्होंने देवम को मोबाइल देते हुए कहा।
देवम ने पापा को फोन करके कहा-“हाँ हलो पापा, मैं देवम बोल रहा हूँ। एक अंकल-चिप्स
का पैकिट भी लेते आना।”
“अच्छा, और
कुछ तो नहीं, अपनी मम्मी से भी पूछ लो।” पापा ने पूछा।
“नही, और
कुछ नही, पापा बस।” देवम ने कहा।
सामने वाले अंकल को हँसी भी आई और
देवम की दूरदर्शिता अच्छी भी लगी। शायद मोबाइल फोन की महत्ता का ज्ञान हुआ हो।
देवम ने अंकल को धन्यवाद दिया और उनका मोबाइल उन्हें वापस कर दिया।
थोड़ी देर में देवम के पापा आ चुके
थे। नाश्ता भी आ गया था और देवम के अंकल-चिप्स भी आ गये थे। सभी ने नाश्ता किया।
कुछ घर का लाया हुआ और कुछ अभी लाया हुआ।
कुछ देर आराम करने के बाद, सोने की तैयारी होने लगी। देवम ने सबसे नीचे वाली बर्थ पर सोना पसन्द
किया। पापा और मम्मी ऊपर वाली बर्थों पर सो गये। सामने वाले भी अपनी-अपनी बर्थ पर
सो गये।
रात का लगभग दो बजे का समय हुआ
होगा। कोई छोटा स्टेशन रहा होगा, शायद फालना। गाड़ी दो मिनट के
लिए रुकी और फिर चल दी।
देवम ने देखा कि सामने वाली बर्थ
वाले दोनों अंकल अपनी बर्थ पर नहीं थे। दोनों बर्थ खाली थीं और ना ही उनका कोई
सामान था।
देवम के मन में शंका हुई। अगर
बाथरूम जाना था तो एक जाता,
दोनों का न होना और वह भी सामान के साथ। जाना तो उन्हें अहमदाबाद से
आगे मुम्बई तक था, पर बीच में ही क्यों उतर गये।
शंका का होना लाज़मी था। उसने सीट
के नीचे झुक कर देखा तो होश ही उड़ गये। नीचे एक बैग रखा था जिसमें से टिक-टिक की
आवाज आ रही है। और यह तो वही बैग था जिसे दोसा स्टेशन पर उस आदमी ने शिवपाल अंकल
को दिया था। समझते देर न लगी। शायद बम्ब था।
उसने तुरन्त ही पापा-मम्मी को
जगाया। उन्होंने देख कर निश्चय कर लिया कि यह बम्ब ही है। तब तक पास के यात्री भी
जग चुके थे।
इसकी सूचना देवम के पापा ने
टी.सी.बाबू को दी। आनन-फानन में टी.सी.बाबू ने गार्ड और ड्रायवर को सूचित किया। अब
तक तो कोच के सभी यात्री जाग चुके थे। साथ ही आगे-पीछे के कोच में भी यह खबर आग की
तरह फैल गई थी। रेलवे स्टाफ को सूचना
मिलते ही सब हरकत में आ गये। उन्होंने यात्रियों को शान्ति और धैर्य बनाऐ रखने का
निवेदन भी किया।
उधर यह सूचना तुरन्त पास के रेलवे
स्टेशन अजमेर,
आबू रोड, जयपुर और अहमदाबाद को भेजी गई। ताकि
शीघ्र से शीघ्र, हर सम्भव सहायता उपलब्ध कराई जा सके।
रेलवे स्टाफ ने ऐसा निर्णय लिया कि
इस एस-2 कोच को काट कर अलग कर दिया जाये। ताकि यदि समय रहते बम्ब डिफ्यूज़ न किया
जा सका,
तो भी कम से कम जान हाँनि से तो बचा ही जा सके और बड़ी होनारत को
टाला जा सके।
रेलवे स्टाफ ने एस-2 स्लीपिंग कोच
के सभी यात्रियों को शान्ति से जल्दी से जल्दी एस-2 कोच को खाली कर पास वाले कोच
एस-1 और एस-3 में शिफ्ट होने को कहा। सभी यात्रियों ने शीघ्रता से कोच को खाली कर
दिया। जब तक एस-2 कोच खाली हुआ, गाड़ी रुक चुकी थी।
रेलवे स्टाफ ने एस-2 और एस-3 कोच को
अलग कर,
इन्जन को आगे बढ़ा कर एस-2 कोच को एस-1 से अलग कर दिया। इस प्रकार
केवल एस-2 कोच को काट कर अलग कर दिया गया था ताकि बम्ब-ब्लास्ट होने पर, कम से कम
जान-हाँनि तो न ही हो।
बाकी ट्रेन को आगे ले जाकर रोक दिया
गया। बस इन्तज़ार था तो बस, बम्ब निरोधक दस्ते
का। जो बम्ब को डिफ्यूज़ कर कोच को सुरक्षित कर सके। पर समय रहते घटना-स्थल पर ना
तो बम्ब निरोधक दस्ता ही पहुँचा और ना ही कोई सहायता।
बौगी तो रेल विभाग के कर्मचारी और
यात्रियों के सहयोग से खाली की जा चुकी थी। और कुछ ही क्षणों के बाद बौगी में
जबरदस्त विस्फोट हुआ। विस्फोट बड़ा भयंकर था। ऐसा लगा कि कान के पर्दे ही फट गये
हों। दिल दहला देने वाला विस्फोट था। दूर-दूर तक बौगी के टुकड़े बिखर गये थे। आग
की लपटें तो जैसे आकाश को ही छूना चाहतीं थीं।
ट्रेन दो हिस्सों में बटी हुई खड़ी
थी और बीच में धूँ-धूँ कर के जल रहा था एस-2 कोच। पूरे कोच के परखच्चे इधर-उधर
बिखर गए थे। बिलकुल तहस-नहस हो गया था स्लीपिंग कोच एस-2।
उस ऊपर वाले का लाख-लाख शुक्रिया था
जो कि सभी यात्री सुरक्षित थे किसी का बाल-बाँका भी न हुआ था। और कोई भी हताहत
नहीं हुआ था। नुकसान हुआ था तो केवल कोच का।
लोग बस उस अनजान बालक को लाख-लाख
दुआऐं दे रहे थे जिसकी बदौलत कि वे आज जिन्दा थे। कल्पना करते ही उनके रौंगटे खड़े
हो जाते।
यदि ऐसा न हुआ होता तो क्या हुआ
होता? शायद खाक हो चुके होते वे और न जाने कहाँ-कहाँ बिखरे पड़े होते उनके मांस
के लोथड़े। कितने परिवारों का क्या-क्या हुआ होता, ये सब तो
कल्पना के परे था सोच पाना भी।
सुबह होते-होते तो रेल सुरक्षा बल, बम्ब निरोधक दस्ते और आई.बी. की टीम घटना स्थल पर पहुँच चुकीं थीं। पुलिस
और आई.बी. की टीम ने आकर सभी परिस्थिति की जानकारी टी.सी. बाबू, गार्ड बाबू, रेलवे स्टाफ और ड्रायवर से प्राप्त की।
ए.टी.एस. और एन.आई.ए. की टीम ने जले
हुए कोच का अध्ययन किया। शायद यह पता चलाने का प्रयास हो रहा हो कि
बम्ब में कौन-सी सामिग्री का उपयोग किया गया है और इस ब्लास्ट के पीछे किस संगठन
का हाथ हो सकता है। क्षति-ग्रस्त कोच अब एन.एस.जी. की निगरानी में था।
टी.सी. बाबू ने पुलिस, ए.टी.एस और
आई.बी. के लोगों को देवम के पापा से मिलवाया। क्योंकि देवम के पापा और देवम ही एक
मात्र ऐसे व्यक्ति थे जो कि आतंकवादियों के विषय में कुछ बता सकते थे।
देवम के पापा ने अपने मोबाइल में से
आतंकवादियों का मोबाइल नम्बर ऑफीसर को बताया। जिस मोबाइल से देवम ने जयपुर में
प्लेटफार्म से अंकल-चिप्स लाने के लिये पापा को फोन किया था। साथ ही वे जानकारियाँ
दी जो उन्हें यात्रा के दौरान उनसे बातचीत करते समय मिल पाईं थीं। जो लोग इन्हें
दिल्ली रेलवे स्टेशन पर छोड़ने आये थे, उनके विषय में भी
बताया।
यह मोबाइल नम्बर आई.बी के लिये बहुत
महत्वपूर्ण था। आई.बी. के ऑफीसर ने हैड-ऑफिस को तुरन्त ही इस मोबाइल नम्बर को
ट्रैस करने का निर्देश दिया।
साथ ही पुलिस और टास्क-फोर्स को भी
निर्देश दिया कि वे उन आतंकवादियों का पीछा करें। देवम और देवम के पापा के सहयोग
से आतंकवादियों स्कैच भी बनवाया गया जिसके आधार पर उन्हें पकड़ा जा सके।
देवम ने पुलिस अफसर को बताया कि
मुझे इन दोनों लोगों पर शक तो दोसा स्टेशन पर ही हो गया था। जब एक आदमी बैग को
लेकर प्लेटफार्म पर बिजली के खम्भे के नीचे खड़ा था और शिवराज सिंह ने नीचे उतर कर, उस आदमी से बात की और बैग लेकर ट्रेन में आ गया। उसके बाद ये दोनों आदमी
बहुत चौकन्ने हो गये थे। और सोने की तैयारी करने के बजाय सीट खोल कर बैठ गये थे।
इनका मोबाइल नम्बर लेने के लिए ही
मैंने जयपुर में पापा को फोन किया था और मैं नाटक करने में सफल हो गया। मैं सोया
नही,
जागता रहा और सोने का नाटक करता रहा। मैं चोर नज़र से इनकी
गतिविधियों को देखता रहा। जैसे ही ये दोनों फालना स्टेशन पर उतरे और गाड़ी चली,
मैने इन्हें प्लेटफार्म पर जाते हुए देखा तो तुरन्त ही मैं समझ गया
कि ये गाड़ी से उतर कर जा चुके हैं। जरूर कुछ गड़बड़ है। मैंने पापा को जगा कर सब
कुछ बताया।
मीडिया का भारी जमाबड़ा था
घटना-स्थल पर। कोई प्रेस वाला, तो कोई चेनल वाला। तरह-तरह के
इन्टरव्यू लिए जा रहे थे। मीडिया ने देवम का इन्टरव्यू लिया। तरह-तरह के प्रश्न
देवम से पूछे गये। देवम ने मीडिया के सभी प्रश्नों के सन्तोषजनक उत्तर दिये।
देवम के पापा और देवम को पुलिस की
विशेष सुरक्षा प्रदान की गई। पुलिस और आई.बी. का मानना था कि उनकी जान को खतरा हो
सकता है। साथ ही उनसे फिलहाल आगे की यात्रा न करने का अनुरोध भी किया। देवम के
पापा ने उनके प्रस्ताव को उचित समझा और सोमनाथ न जाने का निर्णय लिया।
पुलिस ने अपनी सुरक्षा के अन्तर्गत
देवम और देवम के पापा-मम्मी को दिल्ली पहुँचाने की व्यवस्था की। साथ ही देवम के घर
और सोसायटी में भी पुलिस-फोर्स की कड़ी सुरक्षा प्रदान की गई।
देवम को जो पुण्य-फल सोमनाथ में
भोले बाबा के दर्शन करके प्राप्त नहीं हो पाता, उस फल से लाख गुना
अधिक पुण्य-फल भोले शंकर ने भोले यात्रियों की जान बचवा कर देवम को दे दिया। शायद
भोले बाबा यही चाहते हों, और देवम को उन्होंने इस पुण्य-कार्य का माध्यम बनाया हो।
उनकी लीला तो वे ही जाने।
उधर पुलिस, टास्क फोर्स के साथ, आतंकवादियों के मोबाइल फोन के
लोकेशन को ट्रेस करते हुए आतंकवादियों के पास तक पहुँच चुकी थी। आतंकवादियों को
चारों ओर से घेरा जा चुका था।
दौनों ओर से फाइरिंग चालू हो गई थी।
फाइरिंग दो पुलिस-कर्मी शहीद हो गये थे और एक आतंकवादी मारा जा चुका था। दो घण्टों
के कड़े संघर्ष के बाद दूसरे आतंकवादी को जिन्दा पकड़ने में पुलिस सफल हो गई।
आतंकवादियों को उम्मीद भी न थी कि
पुलिस इतनी जल्दी उन तक पहुँच जायेगी। शायद उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ होगा या
नही,
पर यह सत्य था कि यदि देवम के द्वारा दिया गया मोबाइल नम्बर पुलिस
के पास नहीं होता तो शायद पुलिस आतंकवादियों तक कभी भी नहीं पहुँच सकती थी।
आई.जी. पुलिस और रेलवे स्टाफ ने
देवम के इस कार्य की खूब-खूब सराहना की। आई.जी. पुलिस ने तो मीडिया को दिये गये
अपने इन्टरव्यू में इस बात का उल्लेख भी किया और देवम की भूरि-भूरि प्रशंसा भी की।
बाद में पता चला कि वे दोनों शिवपाल
और राजपाल नहीं थे वल्कि खूँख्वार आतंकवादी अज़मल खान और मंसूर अली थे। इनके तार
मुम्बई बम्ब-ब्लास्ट से भी जुड़े हुए थे, ऐसा पुलिस का मानना
था। इन दोनों आतंकवादियों की तो इंटरपोल को भी तलाश थी।
इनकी सूचना देने वाले को सरकार ने
दो-दो लाख रुपये के इनाम भी घोषित किये हुए थे। देवम की चतुराई और दूरदर्शिता ने, एक को जिन्दा और एक को मुर्दा सरकार तक पहुँचा दिया।
खूँख्वार आतंकवादी मंसूर अली
मुठभेड़ में मारा गया और अज़मल खान अब पुलिस की गिरफ्त में है।
दूसरे दिन सभी समाचार-पत्रों में
जलती हुई बौगी के दृश्य थे और हैड लाइन थी, धूँ-धूँ जलती ट्रेन,
चतुर बालक देवम ने बचाई लाखों जान। तो किसी पेपर की हैड-लाइन थी, बहादुर देवम की चतुराई से एक खूँख्वार आतंकवादी मारा गया और दूसरा पकड़ा
गया।
टी.वी. और चेनल वालों ने देवम के
इन्टरव्यू को विशेष कबरेज़ के साथ प्रसारित किया।
कुछ दिनों के बाद पुलिस विभाग
द्वारा देवम के सम्मान में एक समारोह रखा गया। जिसमें देवम को चार लाख रुपये का एक
चैक और प्रशस्ति-पत्र आई.जी. द्वारा प्रदान किया गया। साथ ही उन्होंने बताया कि
देवम का नाम उन बहादुर बच्चों की लिस्ट में शामिल करने के लिए सरकार को भेज दिया
गया है जिन्हें गणतंत्र-दिवस समारोह में सम्मानित किया जाना है।
देवम बहुत खुश था और शायद उससे कई
गुना अधिक देवम के मम्मी-पापा और दादा जी।
देवम ने पापा की अनुमति लेकर पैसे
सोसायटी वैलफेयर-फंड में जमा करा दिये। ताकि यह धन-राशि समाज के गरीब एवं
दलित-वर्ग के लोगों के उत्थान में काम आ सके। और प्रशस्ति-पत्र ड्रोइंग-रूम में
टंगवा दिया।
***
...आनन्द
विश्वास
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-10-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2494{ चुप्पियाँ ही बेहतर } में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
समय रहते सब ठीक हो गया देवम की चतुराई से...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (14-10-2016) के चर्चा मंच "रावण कभी नहीं मरता" {चर्चा अंक- 2495} पर भी होगी!
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत प्रेरक कहानी है .
ReplyDeleteThis is a great post thankss
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