दखलंदाजी सही नहीं.
यह कविता मेरे काव्य-संकलन
मिटने वाली रात नहीं
से ली गई है।
एक दूसरे
के कामों में, दखलंदाजी सही नहीं।
सूरज रोज़
सुबह उगता है,
और शाम को
ढल जाता है।
और चंद्रमा
रोज़ शाम को,
आ कर सुबह चला
जाता है।
एक प्रकाशित
करता जग को, दूजा देता शीतलता,
दौनों
कामों में निष्ठा है, क्या ऐसा करना सही नहीं।
नदियाँ सिंचित
करतीं धरती,
धरती
देती है हरियाली।
वादल ले
पानी सागर से,
हम सबको
देते खुशहाली।
जल का चक्र सदा चलता है,मौसम जिससे बदला करता
जल का चक्र सदा चलता है,मौसम जिससे बदला करता
सृष्टि-चक्र
अवरोधित कर, विपति निमंत्रण सही नहीं।
राजनीति
में निष्ठा - प्रेमी,
और समर्पित, कर्मठ जन हों।
सेवा
जिनका मूल - मंत्र हो,
और सुकोमल निर्मल मन हो।
जन-जन के मन में
बस कर जो, जन सेवा का काम करें,
ऐसे लोगों
के द्वारा क्या, शासन-संचालन सही नहीं?
न्यायाधीश
पंच परमेश्वर,
निर्भय हो
कर न्याय करें।
शीघ्र और
निष्पक्ष न्याय हो,
भ्रष्ट - कर्म
से लोग डरें।
भ्रष्ट, अनैतिक, व्यभिचारी
को,
कभी न कोई माँफ करे,
राम-राज्य फिर
से आये, क्या ऐसा करना सही नहीं?
......आनन्द विश्वास
Waah kya bat hai , behtreen prastuti ******
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही बढि़या ।
ReplyDeleteसही है आनंद जी, दखलंदाज़ी बिलकुल भी सही नहीं....
ReplyDelete- - सुन्दर भाव. बधाई.
दो-तीन दिनों तक नेट से बाहर रहा! एक मित्र के घर जाकर मेल चेक किये और एक-दो पुरानी रचनाओं को पोस्ट कर दिया। लेकिन मंगलवार को फिर देहरादून जाना है। इसलिए अभी सभी के यहाँ जाकर कमेंट करना सम्भव नहीं होगा। आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
ReplyDeleteआपका सहयोग और स्नेह ही तो मेरी शक्ति है। आज के जीवन की आपाधापी में दूसरों के लिये समय निकाल पाना, सच में आप जैसे बिड़ले ही कर सकते हैं। आपकी भावना और शक्ति को नमन।....
Deleteआनन्द विश्वास।
सही कहा...सब अपना अपना काम समय पर करें तो कोई झंझट ही न हो...अच्छी रचना....
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteइंडिया दर्पण की ओर से शुभकामनाएँ।
इंडिया दर्पण के मंगलमय उज्ज्वल भविष्य के लिये
ReplyDeleteढेर सारी शुभकामनाऐं।
आनन्द विश्वास
काश ऐसा हो जाये .....बहुत सार्थक और सुन्दर रचना...
ReplyDeletebahut sundar..sateek
ReplyDeleteराजनीति में निष्ठा - प्रेमी,
ReplyDeleteऔर समर्पित, कर्मठ जन हों।
सेवा जिनका मूल - मंत्र हो,
और सुकोमल निर्मल मन हो ...
आज राजनीति में सब कुछ है बस यही नहीं है ... सार्थक चिन्तक है आपका ...
ऐसा हो और ऐसे लोग वहाँ पहुँचें,
ReplyDeleteयही तो सबको बताना है।
आनन्द विश्वास
भ्रष्ट, अनैतिक, व्यभिचारी को, कभी न कोई माँफ करे,
ReplyDeleteराम-राज्य फिर से आये, क्या ऐसा करना सही नहीं?waah bahut badhiya...
सुन्दर अभिव्यक्ति.....बधाई.....
ReplyDeleteधन्यवाद चतुर्वेदी जी।
Deleteअपना स्नेह बनाये रखिये।
आनन्द विश्वास