बुरा न बोलो बोल रे.
.....आनन्द विश्वास.
वाणी में मिसरी तो घोलो, बोल-बोल
को तोल रे।
मानव मर जाता है लेकिन,
शब्द कभी ना मरता है।
शब्द-बाण से आहत मन का,
घाव कभी ना भरता है।
सौ-सौ बार सोच कर बोलो, बात यही अनमोल रे,
बुरा न देखो, बुरा सुनो ना, बुरा
न बोलो बोल रे।
पांचाली के शब्द-बाण से,
कुरूक्षेत्र रंग लाल हुआ।
जंगल-जंगल भटके पांडव,
चीरहरण, क्या हाल हुआ।
अच्छा बोल सको तो बोलो, वर्ना
मुँह मत खोल रे,
बुरा न देखो, बुरा सुनो ना, बुरा
न बोलो बोल रे।
जो देखोगे और सुनोगे,
वैसा ही मन हो जायेगा।
अच्छी बातें, अच्छा दर्शन,
जीवन निर्मल हो जायेगा।
अच्छा मन,सबसे अच्छा धन, मनवा जरा टटोल रे,
बुरा न देखो, बुरा सुनो ना, बुरा
न बोलो बोल रे।
कोयल बोले मीठी वाणी,
कानों में रस घोले है।
पिहु-पिहु मन मोर नाचता,
सबके मन को मोहे है।
खट्टी अमियाँ खाकर मिट्ठू, मीठा-मीठा
बोल रे।
बुरा न देखो, बुरा सुनो ना, बुरा
न बोलो बोल रे।
(काव्य-माधुरी संस्थान कनाडा द्वारा आयोजित
(काव्य-माधुरी संस्थान कनाडा द्वारा आयोजित
कवि-सम्मेलन में श्री सुरेन्द्र पाठक जी
द्वारा किया गया मेरी कविता
*बुरा न बोलो बोल रे*
का काव्य-पाठ।)
कोटि-कोटि धन्यवाद।
ReplyDeleteअपना स्नेह बनाये रखियेगा।
आनन्द विश्वास।