सुन लो भैया, कान खोल कर
मानव - मन चंचल होता है, ये मानव की लाचारी,
सुन लो भैया, कान खोल कर, हम हैं भ्रष्टाचारी।
जिसको जितना मिला, जहाँ पर, वहीं उसी ने खाया,
तुम भी ढूँढो ठौर-ठिकाना, क्यों रोते हो भाया।
मैंने पाया , तुम्हें मिला ना, इसमें मेरा दोष नहीं है,
क्यों जलते हो, बड़े भाग्य से, मिलती ऐसी माया।
स्वीपर लेता 'चाय - पानी', बाबू लेता 'खर्चा-पानी',
और कहीं पर 'हफ्ता' चलता, औरकहीं 'मनमानी'।
कोई तो 'ताबूत' में खुश है, कोई 'खान- खनन' में,
सबके सब अपनी जुगाड़ में,बजा रहे हैं, अपनी ढ़परी,
जिसमें कुछ मिल जाये भैय्या, कोई ऐसा खेल करो।
या फिर घूमो झंडे लेकर, और पुलिस के खाओ डंडे,
या फिर अनशन करने बैठो,और पुलिस की जेल भरो।
आती माया किसे न भाती,जीवन में सुख-सुविधा लाती,
भ्रष्टाचार बसा नस-नस में, इसे मिटाना क्या है बस में।
मन पागल ठगनी-माया में, चकाचौंध चंचल छाया में,
कंचन-मृग सीता मन डोला,मानव-मन कैसे हो वश में।
भ्रष्टाचार मिटाने वालो, काले धन को लाने वालो,
अनशन कोई मार्ग नहीं है, मन को हमें बदलना होगा।
भ्रष्ट आचरण मन से होता,मन से तन संचालित होता,
नैतिकता का पाठ पढ़ा कर, निर्मल इसे बनाना होगा।
ऐसी अलख जगाओ भैय्या, नैतिकता का मूल्य बढे,
मन निर्मल हो गया अगर,तो तन भी अच्छे काम करेगा।
नैतिकता, निष्ठा होगी तो, बुरा न कोई काम करेगा,
विश्व-जयी तब देश बनेगा और विश्व में नाम करेगा।
...आनन्द विश्वास
मानव - मन चंचल होता है, ये मानव की लाचारी,
सुन लो भैया, कान खोल कर, हम हैं भ्रष्टाचारी।
जिसको जितना मिला, जहाँ पर, वहीं उसी ने खाया,
तुम भी ढूँढो ठौर-ठिकाना, क्यों रोते हो भाया।
मैंने पाया , तुम्हें मिला ना, इसमें मेरा दोष नहीं है,
क्यों जलते हो, बड़े भाग्य से, मिलती ऐसी माया।
स्वीपर लेता 'चाय - पानी', बाबू लेता 'खर्चा-पानी',
और कहीं पर 'हफ्ता' चलता, औरकहीं 'मनमानी'।
कोई तो 'ताबूत' में खुश है, कोई 'खान- खनन' में,
कोई 'चारा',कोई 'टू-जी', कोई खाता 'खेल-खेल'
में।
सबके सब अपनी जुगाड़ में,बजा रहे हैं, अपनी ढ़परी,
जिसमें कुछ मिल जाये भैय्या, कोई ऐसा खेल करो।
या फिर घूमो झंडे लेकर, और पुलिस के खाओ डंडे,
या फिर अनशन करने बैठो,और पुलिस की जेल भरो।
आती माया किसे न भाती,जीवन में सुख-सुविधा लाती,
भ्रष्टाचार बसा नस-नस में, इसे मिटाना क्या है बस में।
मन पागल ठगनी-माया में, चकाचौंध चंचल छाया में,
कंचन-मृग सीता मन डोला,मानव-मन कैसे हो वश में।
भ्रष्टाचार मिटाने वालो, काले धन को लाने वालो,
अनशन कोई मार्ग नहीं है, मन को हमें बदलना होगा।
भ्रष्ट आचरण मन से होता,मन से तन संचालित होता,
नैतिकता का पाठ पढ़ा कर, निर्मल इसे बनाना होगा।
ऐसी अलख जगाओ भैय्या, नैतिकता का मूल्य बढे,
मन निर्मल हो गया अगर,तो तन भी अच्छे काम करेगा।
नैतिकता, निष्ठा होगी तो, बुरा न कोई काम करेगा,
विश्व-जयी तब देश बनेगा और विश्व में नाम करेगा।
...आनन्द विश्वास
sundar bade bhaiyaa...
ReplyDeletesaadar...
ऐसी अलख जगाओ भैय्या, नैतिकता का मूल्य बढे,
ReplyDeleteमन निर्मल हो गया अगर, तो तन भी अच्छे काम करेगा.
bahut sundar man prafullit ho gaya badhai
बहुत बढ़िया संदेश देती हुई रचना,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
यथार्थ का सशक्त चित्रण करने के साथ-साथ नैतिकता का सार्थक सन्देश देती आपकी रचना सर्वजनग्राह्य है |
ReplyDeleteभ्रष्टाचार मिटाने वालो, काले धन को लाने वालो,
ReplyDeleteअनशन कोई मार्ग नहीं है, मन को हमें बदलना होगा.
भ्रष्ट आचरण मन से होता, मन से तन संचालित होता,
नैतिकता का पाठ पढ़ा कर, निर्मल इसे बनाना होगा.
....bilkul sach kaha aapne jab tak hamara man nahi badlega tab tak yun hi sabkuch chalta rahega..
bahut badiya saarthak sandesh prastuti ke liye aabhar!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज शुक्रवार (17-07-2015) को
ReplyDelete"एक पोस्ट का विश्लेशण और कुछ नियमित लिंक" {चर्चा अंक - 2039}
(चर्चा अंक- 2039) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक