ऐसा
कोई धाम बता
दो,
जहाँ न हों
घनश्याम बता दो।
कण
- कण में वो रमा हुआ है,
उसके
बल जग
थमा हुआ है।
खुदा
वही है, राम वही
है,
चितचोर वही घनश्याम वही है।
श्रद्धा जो
मन में पाले
है,
उसके संग - संग वो चाले है।
छल
औ कपट उसे ना भाता,
दुष्टों
को वह दूर
भगाता।
मन निर्मल
जब हो जायेगा,
उसका दर्शन
हो जायेगा।
तुम
भी उसको पा
सकते हो,
उसके
मन में छा
सकते हो।
उसको तो
मीरा ने जाना,
उसको सूर, कबीरा जाना।
और
समर्पित हो अर्जुन ने,
कर्म, ज्ञान, भक्ति को जाना।
सोंपो उसको
अपनी डोरी,
बड़ा सरल है उसको पाना।
-आनन्द विश्वास
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