1
हमने
माना
पानी नहीं बहाना
तुम भी मानो।
2.
छेड़ोगे तुम
अगर प्रकृति को
तो भुगतोगे।
3.
सूखा ही सूखा
क्यों है चारों ओर
सोचो तो सही।
4.
जल-जंजाल
न बने जीवन का
जरा विचारो।
5.
हँसना
रोना
बोलो, कौन सिखाता
खुद आ जाता।
6.
सुनो
सब की
सोचो समझो और
करो मन की।
-आनन्द विश्वास
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26 -05-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2354 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (27-05-2016) को "कहाँ गये मन के कोमल भाव" (चर्चा अंक-2355) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'