Monday, 6 June 2016

"ऊँचे-ऊँचे लोगों के"

ऊँचे - ऊँचे   लोगों  के अब,
घटिया सुनो वयान, रामजी।
न्याय-प्रिय जनता के अब तो,
खटिया पर हैं प्राण, रामजी।

साधू  संतों   वाली   वाणी,
सुनने से डरता  अब प्राणी।
विषधर से ज्यादा विषमय,
लेकर फिरते ज्ञान, रामजी।

बक-बक करते सारे दिनभर,
दोष मढ़े  दूजों के  सिर पर।
चौथा खम्बा  धरे  जेब में,
डोलें  ये  श्रीमान, रामजी।

गोली की  बोली  ये बोलें,
पैसे  के  पीछे  ये  हो  लें।
गड़-बड़झाला  करने  वाले,
चलते सीना तान, रामजी।

जोड़-तोड़  करने  वालों ने,
तोड़-फोड़  करने  वालों ने।
आग लगादी दुनियाँ भर को,
व्याकुल वेद-कुरान,रामजी।

ऐसे   में   कैसे   हम  जी  लें,
व्याकुल-मन कैसे लव सीं लें।
सन्नाटा   है    गली-गली   में,
कुछ तो करो निदान,रामजी।  
 -आनन्द विश्वास

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