उजियार होगा या नहीं
रवि किरण ने कर लिया रिस्ता
तिमिर से,
कौन जाने भोर
को उजियार होगा
या नहीं।
हर तरफ छाई निराशा,
आस की बस लाश बाकी।
साँझ तो सिसकी अभी तक,
भोर में फैली उदासी।
तम सघन में चल पड़ी जब,
तम-किरण की पालकी,
अब दीप अपने वंश
का अवतार होगा या नहीं।
अब मुस्कराहट फूल की,
लीलाम होती हर गली में।
दिन दहाड़े भ्रँवर
अब तो,
झाँकता है हर कली में।
बागवाँ के चरण दूषित, क्या करें मासूम कलियाँ,
कौन जाने बाग अब
गुलज़ार
होगा या नहीं।
करता अब शोषण शासन ही,
महलों से दाता
का नाता।
भूखा यदि रोटी माँगे
तो,
हथकड़ियों का गहना पाता।
महलों का निर्माता, फुटपाथों पर सोया
करता,
राम-राज्य का स्वप्न
अब साकार होगा
या नहीं।
मानव-मानव का रक्त पिये,
क्या यही नीति का सार है।
द्रुपदाओं के चीर खिचें,
क्या यही नीति का सार है।
सत्य ही बन्दी बना जब, कंस
के दरबार में,
कौन जाने कृष्ण का
अवतार
होगा या नहीं।
...आनन्द विश्वास
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