Monday, 1 July 2019

मेरा बाल-उपन्यास देवम, अब मणिपुरी में भी

मित्रो,
मेरा बाल-उपन्यास देवम, अब मणिपुरी भाषा में भी उपलब्ध है। जिसे के.टी.पब्लिकेशन, इम्फाल (मणिपुर) द्वारा प्रकाशित किया गया है और जिसका अनुवाद श्री खाड़ेम्बम तोमचौ जी के द्वारा किया गया है। हिन्दी बाल-उपन्यास को मणिपुरी भाषा में अनुवाद कर मणिपुरी भाषा-भाषी बच्चों और साहित्य-प्रेमी पाठकों तक पहुँचाने का, श्री तोमचौ जी का यह प्रयास निश्चय ही सराहनीय कार्य है। पुस्तक विमोचन के समय के प्राप्त कुछ चित्र साझा कर रहा हूँ।
धन्यवाद। 
-आनन्द विश्वास





-आनन्द विश्वास

Sunday, 10 February 2019

"ऐसे जग का सृजन करो, माँ"

अविरल वहे  प्रेम  की सरिता,
मानव - मानव   में  प्यार  हो।
फूलें-फलें   फूल   बगिया  के,
काँटों   का   हृदय  उदार  हो।

जिस मग में कन्टक हों पग-पग,
ऐसे  मग  का  हरण  करो, माँ।
ऐसे  जग का  सृजन  करो, माँ।

पर्वत  सागर  में    समता  हो,
भेद-भाव  का  नाम  नहीं  हो।
दौलत  के   पापी   हाथों   में,
बिकता  ना  ईमान  कहीं  हो।

लंका  में  सीता  को  भय  हो,
ऐसे  जग का  सृजन करो, माँ।
ऐसे  जग का  सृजन करो, माँ।

परहित  का  आदर्श  जहाँ हो,
घृणा-द्वेश-अभिमान  नहीं हो।
मन-वचन-कर्म का शासन हो,
सत्य जहाँ  बदनाम  नहीं हो।

जन-जन  में   फैले  खुशहाली,
घृणा अहम् का दमन करो माँ।
ऐसे  जग का सृजन  करो, माँ।

धन  में   विद्या  अग्रगण्य  हो,
सौम्य    मनुज    श्रृंगार   हो।
सरस्वती, दो  तेज किरण-सा,
हर   उपवन   उजियार   हो।

शीतल,स्वच्छ,समीर सुरभि हो,
उस उपवन का वपन करो, माँ।
ऐसे  जग का  सृजन करो, माँ।
-आनन्द विश्वास

Saturday, 9 February 2019

"आया मधुऋतु का त्योहार"

खेत-खेत   में   सरसों  झूमेसर-सर  वहे  वयार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
धानी  रंग  से  रंगी धरा,
परिधान   वसन्ती  ओढ़े।
हर्षित  मन  ले लजवन्ती,
मुस्कान   वसन्ती   छोड़े।
चारों  ओर  वसन्ती  आभाहर्षित  हिया  हमार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
सूने-सूने  पतझड़  को  भी,
आज वसन्ती प्यार मिला।
प्यासे-प्यासे  से नयनों को,
जीवन का  आधार मिला।
मस्त  गगन हैमस्त  पवन है, मस्ती  का अम्बार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
ऐसा   लगे  वसन्ती  रंग  से,
धरा की हल्दी आज चढ़ी हो।
ऋतुराज ब्याहने  आ पहुँचा,
जाने की जल्दी आज पड़ी हो।
और कोकिला  कूँक-कूँककर, गाये मंगल ज्योनार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
पीली चूनर ओढ़ धरा अब,
कर  सोलह  श्रृंगार  चली।
गाँव-गाँव  में  गोरी  नाचें,
बाग-बाग  में  कली-कली।
या फिर  नाचें  शेषनाग  पर, नटवर  कृष्ण  मुरार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
-आनन्द विश्वास

Tuesday, 1 January 2019

"पीछे मुड़कर कभी न देखो"

पीछे  मुड़कर कभी न  देखो, आगे ही तुम  बढ़ते जाना।
उज्ज्वल कल है तुम्हें बनाना, वर्तमान ना व्यर्थ गँवाना।
संघर्ष आज तुमको करना है,
महनत में  तुमको  खपना है।
दिन और रात  तुम्हारे अपने,
कठिन  परिश्रम  में तपना है।
फौलादी आशाऐं लेकर, तुम  लक्ष्य प्राप्त करते जाना।
पीछे मुड़कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना।
इक-इक पल है बड़ा कीमती,
गया समय वापस ना आता।
रहते  समय  न जागे तुम तो,
जीवन  भर  रोना  रह जाता।
सत्यवचन सबको खलता है,मुश्किल है सच को सुन पाना।
पीछे  मुड़कर  कभी न  देखो, आगे  ही तुम  बढ़ते जाना।
बीहड़  बीयावान  डगर  पर,
कदम-कदम पर शूल मिलेंगे।
इस  छलिया  माया  नगरी में,
अपने  ही  प्रतिकूल  मिलेंगे।
गैरों की तो बात छोड़ दो, अपनों  से मुश्किल  बच पाना।
पीछे  मुड़कर कभी न  देखो, आगे  ही  तुम  बढ़ते जाना।
झंझावाती  प्रबल  पवन  हो,
तुमको  कहीं  नहीं रुकना है।
बाधाऐं  हों   सिर  पर हावी,
फिर भी तुम्हें नहीं झुकना है।
मन में  दृढ़  विश्वास  लिए, संकल्प  सिद्ध  करते जाना।
पीछे  मुड़कर कभी न  देखो, आगे ही तुम  बढ़ते जाना।
नदियाँ  कब   पीछे  मुड़तीं हैं,
कल-कल करतीं आगे बढ़तीं।
समय-चक्र  आगे  ही  बढ़ता,
घड़ी कहाँ कब उल्टी चलतीं।
पल-पल बदल रहा है सब कुछ,संग समय के चलते जाना।
पीछे  मुड़कर  कभी न  देखो, आगे  ही  तुम  बढ़ते जाना। 
***
"बेटी-युग" 
"नानी वाली कथा कहानी, अब भी जग में लगे सुहानी। 
बेटी-युग के नए  दौर  में, आओ  लिख  लें नई  कहानी।"
यह कविता महाराष्ट्र, झारखण्ड एवं दिल्ली के NCRT के 
पाठ्यक्रमों में बच्चों को पढ़ाई जाती है।
इसे भी सुनिए..
-आनन्द विश्वास