Wednesday, 6 July 2016

"नभ में उड़ने की है मन में"

नभ में उड़ने की  है  मन में,
उड़कर पहुँचूँ नील गगन में।
काश,  हमारे  दो  पर  होते,
हम  बादल  से  ऊपर  होते।
तारों  के   संग  यारी  होती,
चन्दा  के   संग  सोते  होते।
     बिन पर सबकुछ मन ही मन में
     नभ में उड़ने की  है  मन में।
सुनते  हैं   बादल  से  ऊपर,
ढ़ेरों  ग्रह-उपग्रह   होते   हैं।
उन पर जाते,  पता  लगाते,
प्राणी, क्या उन पर होते हैं।
और धरा से, कितने  उन में,
नभ में उड़ने की  है  मन में।
बहुत बड़ा ब्रह्माण्ड हमारा,
अनगिन सूरज,चन्दा, तारे।
कितने,  सूरज दादा  अपने,
कितने, मामा  और  हमारे।
कैसे  जानूँ,  हूँ  उलझन  में,
नभ में उड़ने की है  मन में।
दादा-मामा  के  घर  जाते,
उनसे मिलकर ज्ञान बढ़ाते।
दादी  के  हाथों  की  रोटी,
दाल-भात औ सब्जी खाते।
लोनी, माखन, मट्ठा मन में।
नभ में उड़ने की  है  मन में।
...आनन्द विश्वास 

3 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 07-07-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2396 दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-07-2016) को "ईद अकेले मना लो अभी दुनिया रो रही है" (चर्चा अंक-2397) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 17 जुलाई 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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