गरमागरम थपेड़े लू के
...आनन्द विश्वास
इतनी गरमी कभी न देखी, ऐसा
पहली बार हुआ है।
नींबू - पानी, ठंडा - बंडा,
ठंडी बोतल डरी - डरी है।
चारों ओर
बबंडर उठते,
आँधी चलती धूल भरी है।
गरमागरम थपेड़े
लू के, पारा सौ के
पार हुआ है।
सब अपना मुँह ढ़ाँप रहे हैं।
बिजली आती-जाती रहती,
एसी, कूलर काँप
रहे हैं।
शिमला नैनीताल चलें अब,मन
में यही विचार हुआ है,
गरमागरम थपेड़े
लू के, पारा सौ के
पार हुआ है।
अभी सुना भू-कम्प
हुआ है,
और सुनामी सागर तल पर।
दूर-दूर तक
दिखे न राहत,
आफत की आहट
है भू पर।
बन्द द्वार कर घर में बैठो,
जीना ही दुश्वार हुआ है,
गरमागरम थपेड़े
लू के, पारा सौ के
पार हुआ है।
नगर-नगर में
पानी-पानी।
सृष्टि सन्तुलन अस्त व्यस्त है,
ये सब कुछ
अपनी नादानी।
मानव-मन पागल है
कितना,समझाना बेकार हुआ है,
गरमागरम थपेड़े
लू के, पारा सौ के
पार हुआ है।
...आनन्द विश्वास
चित्र गूगल से साभार
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 25-06-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2017 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद