ठंडी
आई,
ठंडी आई
ठंडी आई, ठंडी
आई,
ओढ़ो कम्बल
और रजाई।
कोहरे ने
जग लिया लपेट,
गाड़ी नौ - नौ
घण्टे लेट।
हवाई
जहाज की शामत आई।
ठंडी आई, ठंडी
आई।
पानी छूने
से डर लगता,
हाथ तापने
को मन करता।
आग जला
कर तापो भाई,
ठंडी आई, ठंडी
आई।
बन्द हुईं
बच्चों की शाला,
ठंडी ने क्या- क्या कर डाला।
घर
पर लड़ते
बहना भाई।
ठंडी आई, ठंडी
आई।
बात करो तो धुँआ निकलता,
चुप रहने से काम न चलता।
कैसी ईश्वर की चतुराई।
ठंडी आई, ठंडी
आई।
देखो कैसा
बना बगीचा,
हरी घास पर श्वेत गलीचा।
फूलों की आभा
मन भाई।
ठंडी आई, ठंडी
आई।
फसलों को
पाले ने मारा,
बेबस हुआ किसान बिचारा।
उसके घर तो आफत आई।
ठंडी आई, ठंडी
आई।
और झोंपड़ी
अकुलाती है,
दुख-सुख तो सब सह जाती है।
पर
ठंडी वह
सह ना पाई।
ठंडी आई, ठंडी
आई।
...आनन्द
विश्वास.
बहुत कुछ कहती रचना
ReplyDeleteआप प्यारा लिखते हैं ....
ReplyDeleteशुभकामनायें भाई जी !
सतीश जी,
Deleteआपका प्यार और शुभ कामनाऐं
ही मेरी धरोहर हैं। आपके लेखन
ने मुझे कम प्रभावित नहीं किया
है। दिल्ली आने पर आपसे मिलने
का प्रयास करूँगा।
धन्यवाद।
आनन्द विश्वास
आन्नद जी सुन्दर एवं कोमल भाव की प्रस्तुति अति उत्तम
ReplyDeleteआप के कोमल शव्दों ने ह्रदय को बांध के रख लिया
....ठंडी आई, ठंडी आई.
ओढो कम्बल और रजाई.
कोहरे ने जग लिया लपेट,
गाड़ी नौ - नौ घण्टे लेट.