Monday, 5 December 2011

"चलो कहीं पर घूमा जाए"

चलो  कहीं  पर  घूमा   जाए,
थोड़ा  मन  हल्का  हो  जाए।

सबके   अपने -अपने   ग़म   हैं,
किस ग़म को कम आँका जाए।

अनहोनी   को   होना   होता,
पागल  मन  को कौन बताए।

आँखों   में  सागर  छलका है,
खारा  जल   बहता  ही जाए।

कैसे  पल   हैं,  भीगी   पलकें,
गीली   आँखें   कौन  सुखाए।

कहाँ   गये   हैं   जाने   वाले,
चलो  किसी  से  पूछा  जाए।

आना-जाना नियति सृष्टि की,
गये  हुये   को  कौन  बुलाए।

तुम  तो   चले   गये  निर्मोही,
बीता कल, मन भुला न पाए।
-आनन्द विश्वास

4 comments:

  1. सबके अपने - अपने गम हैं,
    किस गम को कम आँका जाये!...bahut badhiyaa

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  2. सबके अपने - अपने गम हैं,
    वाह सर... उम्दा रचना..
    सादर बधाई...

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  3. आपके पोस्ट पर आना सार्थक होता है । मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  4. @तुम तो चले गये निर्मोही,
    बीता कल, मन भुला न पाये!

    पुराने साल को तो जाना ही था, नये को आना ही था। नववर्ष की शुभकामनायें!

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