Thursday, 3 March 2016

मंकी और डंकी



डंकी  के  ऊपर  चढ़  बैठा,
जम्प लगाकर मंकी, लाल।
ढेंचूँ - ढेंचूँ    करता   डंकी,
उसका  हाल  हुआ बेहाल।

पूँछ पकड़ता कभी खींचता,
कभी पकड़कर खींचे कान।
कैसी अज़ब  मुसीबत आई,
डंकी   हुआ   बहुत  हैरान।

बड़े  जोर  से  डंकी  बोला,
ढेंचूँ  -  ढेंचूँ ,  ढेंचूँ  -  ढेंचूँ।
खों - खों  करके  मंकी पूछे,
किसको खेंचूँ, कितना खेंचूँ।

डंकी जी   ने  सोची  युक्ति,
लोट  लगाकर जड़ी दुलत्ती,
खीं-खीं  करता मंकी भागा,
टूट  गई   उसकी   बत्तीसी।
-आनन्द विश्वास

1 comment:

  1. आनन्द भाई
    शुभ प्रभात,
    आपकी कविता ने
    बचपन की यादें ताजा कर दी..
    आप आए..
    शोभा बढ़ी
    पाँच लिकों के आनन्द की
    आते रहिएगा

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