जम्प
लगाकर मंकी, लाल।
ढेंचूँ - ढेंचूँ करता
डंकी,
उसका हाल
हुआ बेहाल।
पूँछ
पकड़ता कभी खींचता,
कभी
पकड़कर खींचे कान।
कैसी अज़ब मुसीबत आई,
डंकी हुआ
बहुत हैरान।
बड़े जोर
से डंकी बोला,
ढेंचूँ -
ढेंचूँ , ढेंचूँ -
ढेंचूँ।
खों - खों करके
मंकी पूछे,
किसको खेंचूँ, कितना खेंचूँ।
डंकी
जी ने
सोची युक्ति,
लोट लगाकर जड़ी दुलत्ती,
खीं-खीं करता मंकी भागा,
टूट गई
उसकी बत्तीसी।
-आनन्द
विश्वास
आनन्द भाई
ReplyDeleteशुभ प्रभात,
आपकी कविता ने
बचपन की यादें ताजा कर दी..
आप आए..
शोभा बढ़ी
पाँच लिकों के आनन्द की
आते रहिएगा