*बहादुर
देवम*
(यह
बाल कहानी मेरे बाल-उपन्यास
*देवम
बाल-उपन्यास*
से
ली गई है।)
...आनन्द
विश्वास
*बहादुर देवम*
स्कूल से छूटकर साइकिल से घर आ रहा
था देवम। तभी पीछे से आती हुई कार का दरवाजा खुला और इससे पहले कि कोई कुछ समझ
पाता, कार से उतर कर दो आदमियों ने देवम को कार के अन्दर धर दबोचा। देवम का विरोध
और शक्ति-प्रदर्शन कुछ भी काम न आ सका। साइकिल वहीं पड़ी रह गई।
लोगों
ने चिल्लाया भी और शोर भी मचाया। और तो और, दो वाइक वाले लोगों ने उस कार का पीछा
भी किया, पर सब कुछ बेकार। तेज गति से दौड़ती हुई कार भीड़ में ओझल हो गई। कुछ भी
अता-पता न चल सका, कार का और ना ही उन लोगों का।
आस-पास के लोग तो हक्का-बक्का ही रह
गये थे। भीड़-भाड़ वाले बाजार में, सरेआम, दिन-दहाड़े ऐसी घटना हो जाये तो इसे
व्यवस्था की असफलता न कहा जाय तो और क्या कहा जाये। सड़क पर तो एकदम सन्नाटा ही छा
गया था। वातावरण एकदम भयावह हो गया था। क्या जमाना आ गया है। कैसा गुण्डा-राज आ
गया है। आज के जमाने में आदमी की सुरक्षा को क्या कहा जाय।
लोगों के बीच में चर्चा का विषय बन
गई थी यह घटना। सबकी सोच एक ही थी बस, कौन हैं ये लोग, जो इस लड़के को उठा कर ले
गये हैं ?
और कहाँ ले गये हैं ? किसका लड़का है ये ?
और क्यों ले गये हैं ? प्रश्न तो अनेक थे, पर
उत्तर किसी के पास भी नहीं था।
सभी अपनी-अपनी राय व्यक्त कर रहे
थे। जितने मुँह उतनी बातें। कोई इस घटना को आपसी रंजिश की संज्ञा दे रहा था तो कोई
इसे पैसा लेने के उद्देश्य से की गई किडनैपिंग की घटना। पर सब कुछ था अनुमान ही और
शायद, वास्तविकता से कोसों दूर।
प्रत्यक्षदर्शी, स्कूल ड्रेस के
आधार पर, केवल इतना ही अनुमान लगा पा रहे थे कि यह लड़का सेन्ट ज़ेवियर्स स्कूल का
कोई छात्र होना चाहिए।
घटना-स्थल पर उपस्थित एक दो
व्यक्तियों ने इसकी सूचना स्कूल में देना उचित समझा। उन्होंने स्कूल में जाकर घटना
की पूरी जानकारी प्रिंसीपल मैडम को दी। प्रिंसीपल मैडम ने तुरन्त ही स्कूल के ऑफिस
क्लर्क और चपरासी को पूरी जानकारी लेने के लिए घटना-स्थल पर भेजा।
स्कूल की छुट्टी तो लगभग एक घण्टे
पहले ही हो चुकी थी। ऑफिस स्टाफ भी जाने की तैयारी में ही था। पर सूचना मिलते ही
प्रिंसीपल मैडम ने बाकी स्टाफ को रोक लिया। पता नहीं कैसी परिस्थिति आ जाये।
ऑफिस क्लर्क और चपरासी को घटना-स्थल
पर साइकिल के अलावा और कुछ भी तो नहीं मिल सका था। जिससे कि छात्र के बारे में कुछ
पता चल सके। आस-पास के लोगों से पूछने पर भी छात्र का नाम-पता नहीं पता चल सका था।
उधर काफी देर तक जब देवम घर नहीं
पहुँचा तो उसकी मम्मी की चिन्ता बढ़ने लगी। वह कभी दरवाजे की ओर देखतीं तो कभी
घड़ी की सूँईयों की ओर। कई बार तो वे सोसायटी के गेट तक भी देख आईं देवम को। पर
दूर-दूर तक कुछ भी तो पता न था देवम का। देवम के साथ के सभी साथी तो कब के घर आ
चुके थे।
वे मन ही मन विचार करने लगीं। पता
नहीं हर रोज़ तो देवम समय पर ही आ जाता था पर आज ही इतनी देर क्यों हो गई ? व्याकुलता बढ़ने लगी, कहीं कुछ हो तो नहीं गया, तरह-तरह के विचार मन में
आने लगे और सबके सब मन को भयभीत करने वाले।
स्कूल में फोन किया तो पता चला कि
स्कूल की छुट्टी हुये तो लगभग एक घण्टा हो चुका है। स्कूल वालों ने बताया कि हमारे
पास यह सूचना है कि अपने स्कूल के एक विद्यार्थी को कुछ अज्ञात लोग सर्किट-हाउस के
सामने से अगवा करके ले गये हैं पर उसका नाम अभी तक पता नहीं चल सका है।
हमारा स्टाफ वहाँ पहुँचा हुआ है आप
वहाँ पहुँच कर जानकारी प्राप्त कर लें। और हो सकता है कि विद्यार्थी का नाम पता
चलाने में शायद आपका सहयोग हमारे कुछ काम आ जाये। निशानी के नाम पर केवल उसकी
साइकिल पड़ी है वहाँ पर। आप वहाँ जाकर साइकिल को देख कर बताएँ कि ये साइकिल कहीं
आपकी ही तो नहीं है, तो हम भी किसी नतीजे तक पहुँच सकेंगे।
देवम की मम्मी तुरन्त ही, सोसायटी
के दो लोगों को साथ लेकर सर्किट-हाउस के पास घटना-स्थल पर पहुँचीं। जहाँ स्कूल के
क्लर्क तथा चपरासी पहले से ही मौज़ूद थे। उनके पास जो भी जानकारी थी, उसे उन्होंने
देवम की मम्मी को बताया।
देवम की मम्मी ने साइकिल को देखते
ही बता दिया कि यह साइकिल देवम की ही है। अब तो यह निश्चय हो गया था कि वे लोग
देवम को ही उठा कर ले गये हैं।
देवम की मम्मी तो हक्का-बक्का ही रह
गईं, उनकी आँखों के सामने तो अँधेरा ही छा गया। सारी दुनियाँ ही जैसे उजड़ गई थी
उनकी। न जाने किस हाल में और कहाँ होगा, देवम। वे सोच भी नहीं पा रहीं थीं कि अब
क्या किया जाय। पर दूसरे ही क्षण अपने आप पर नियंत्रण करते हुए उन्होंने देवम के
पापा को फोन कर घटना की पूरी जानकारी दी और उन्हें सर्किट-हाउस पर आने को कहा।
इधर ऑफिस क्लर्क ने तुरन्त यह
जानकारी प्रिंसीपल मैडम को दी और उनसे घटना-स्थल पर आने का अनुरोध किया। कुछ ही
समय के बाद प्रिंसीपल मैडम घटना-स्थल पर थीं। उन्होंने देवम की मम्मी को तुरन्त
पुलिस को सूचित करने का सुझाव दिया। तब तक देवम के पापा और उनके दोस्त भी वहाँ आ
गये।
पुलिस को सूचना दी गई और रिपोर्ट भी
लिखाई गई। पुलिस ने घटना-स्थल का निरीक्षण किया और फिर सभी जगह मैसिज़ कनवे किया।
शहर के बाहर जाने वाले सभी रास्तों पर चौकसी बढ़ा दी गई और शहर के चप्पे-चप्पे पर
सर्च-ऑपरेशन चालू कर दिया गया।
साथ ही पुलिस ने देवम के पापा का
फोन नम्बर लेकर उस नम्बर को वॉच पर रखा ताकि कोई कॉन्टेक्ट हो तो उस नम्बर को
तुरन्त ही ट्रेस किया जा सके। साथ ही पुलिस-अधिकारी ने उनसे यह भी अनुरोध किया कि
अगर आपसे कोई सम्पर्क करे तो उसकी सूचना तुरन्त ही हम को दें। ताकि हम शीघ्र कदम
उठा सकें।
पुलिस के लगातार प्रयास के फलस्वरूप
भी चौबीस घण्टे के बाद भी पुलिस के हाथ खाली के खाली ही थे। कोई भी जानकारी या
सुराग नहीं था पुलिस के पास। पर प्रयास जारी था।
देवम के पापा-मम्मी परेशान थे। कुछ
भी तो नहीं सूझ रहा था उन्हें, वे करें भी तो आखिर क्या करें। बेचारे सीधे-सादे,
सरल जीवन, कभी किसी से कोई झगड़ा या दुश्मनी भी नहीं और ना ही बहुत पैसे वाले, जो
पैसे के लिए कोई अगवा करे देवम को।
वैसे भी यदि ऐसा होता तो अब तक किसी का फोन तो
आना ही चाहिए था। कोई सम्पर्क तो होना ही चाहिये था। कहीं से कोई पैसे की डिमान्ड
तो आनी ही चाहिये थी। पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। इससे यह अन्दाज़ हो रहा था कि घटना
का उद्देश्य, न तो दुश्मनी हो सकता है और ना ही पैसा। तो फिर ऐसा क्यों हुआ ? प्रश्न तो फिर भी वहीं का वहीं था। उत्तर के बिना।
रात भर न सो सके थे विवेक बाबू और
देवम की मम्मी का तो रोते-रोते बुरा हाल हो गया था। आँखों से आँसू का सैलाव रुकने
का नाम ही न ले रहा था। ग़म के बादल छँटना ही नहीं चाहते थे। ग़मगीन वातावरण हो गया था देवम के घर का।
देवम के दोस्त, सोसायटी वाले, स्कूल
वाले, सभी तो चिन्तित और परेशान थे, अपने प्रिय देवम के लिये। जिसे पता चलता वह
यही पूछता, “ कुछ पता चला देवम का ? ”
और देवम के पापा बस “ नहीं ” ही कह पाते।
फोन की घण्टी के बजने का सिलसिला बन्द होने का नाम ही न ले रहा था। और
बन्द हो भी तो कैसे हो। आखिर घटना ही कुछ ऐसी थी।
उधर देवम की आँख पर बधी पट्टी जब
खोली गई तो उसने अपने आप को एक कमरे में पाया। जहाँ ऊबड़-खाबड़, उल्टा-सीधा सामान
भरा पड़ा था।
पट्टी खोलने वाले आदमी, देवम को
कमरे में बन्द कर, बाहर से ताला लगा कर चले गये। बाहर हॉल में कुछ लड़के पैकिंग का
काम कर रहे थे। एक आदमी ने बाहर से ही खिड़की पर दो रोटी, अचार और एक गिलास पानी
रख दिया और खाना खाने को बोल कर चला गया।
देवम ने खाना नहीं खाया। उसके पास
खाने को ग़म और पीने को आँसू पर्याप्त थे।
थोड़ी देर बाद देवम को हॉल में लाया
गया। वहाँ उसे चरस की पैकिंग करने के लिए बैठा दिया गया। जैसा दूसरे लड़के कर रहे
थे, उसी तरह देवम ने भी काम करना शुरू कर दिया। शायद उसने यही उचित समझा होगा।
यहाँ का नज़ारा देख कर तो देवम
हक्का-बक्का ही रह गया। इनमें से एक लड़के का फोटो तो उसने अखबार में भी देखा था,
गुम हो गये बच्चों के कॉलम में। सब के सब लड़के दस-बारह से बीस-बाईस साल के। सब के
सब बेवश और लाचार। बन्द पिंजरे से आजाद होने को आतुर।
उन लड़कों से पता चला कि इन को भी
ये लोग पकड़ कर ले आए थे। यहाँ पर इन लड़कों से काम करवाते हैं और खाना देते हैं
बस। खाना, सोना और रहना, सब कुछ यहीं पर। स्मगलिंग का काम होता है यहाँ पर। कभी
ड्रग्स की पैकिंग तो कभी अफ़ीम, चरस, गांजे की पैकिंग। और कभी-कभी तो डायमंडस् की
पैकिंग भी की जाती है।
इन लड़कों में से ज्यादातर को तो
पकड़ कर ही लाए हैं ये लोग और कुछ को काम दिलाने के बहाने से इनके ऐजेंटों ने इन
लड़कों को यहाँ ला कर छोड़ दिया। सब कुछ अन्डर-ग्राउन्ड, बाहर निकलना बेहद
मुश्किल।
अब देवम को ख्याल आ गया था कि ये
गेंग लड़कों को अगवा करके यहाँ ले आता है और मजदूरी करवाता है। बाहर न जाने देने
का कारण शायद गोपनीयता ही हो सकता है। बाहर निकलने का कोई उपाय नहीं सूझ पा रहा था
देवम को।
पर इतने दिनों में देवम ने वाइक,
कार और ट्रक को अन्दर आते और बाहर जाते तो देखा था। ट्रक में सामान आता भी था और
पैकिंग के बाद बाहर जाता भी था। स्पष्ट है कोई रास्ता तो होगा ही बाहर जाने का।
और उधर मम्मी-पापा का ख्याल आते ही देवम की
आँखों से आँसू छलक जाते थे। कैसे पल-पल कट रहा होगा उसके बिना उनका। कल्पना करते
ही रोम-रोम थर्रा जाता था उसका। निर्दयी जल्लादों से दया की भीख माँगना, सागर से
पंथ माँगने जैसा ही तो था और राम-बाण उसके पास था ही कहाँ ?
लगभग एक सप्ताह बीत गया। न तो पुलिस
ही देवम का कुछ पता चला पाई और न ही देवम इन गुण्डे-बदमाश स्मग्लरों को चकमा देकर,
इनके चंगुल से आजाद हो पाया। और उधर देवम के मम्मी-पापा की वेदना को आसानी से समझा
जा सकता था।
और आज शाम को ही एक ट्रक आ गया,
शायद माल को ले कर जाने के लिए। गतिविधियाँ तेज हो गईं थीं। स्टाफ के सभी लोग पैक
किए हुए माल को ट्रक में लोड करने में तत्परता के साथ व्यस्त हो गये। मालिक-लोग भी
कार से आए हुए थे। उन्हीं की देख-रेख में लोडिंग का काम चल रहा था। बारह-एक बजे के
करीब ट्रक लोड हो चुका था।
मालिक-लोगों ने चौकीदार को हिदायत
दी कि सुबह छः बजे जब ट्रक बाहर निकले तो हमें सूचित कर देना। साथ ही ड्राइवर को
सम्पर्क में बने रहने का निर्देश दिया। फिर मालिक-लोग तो रात को ही कार से चले
गये। बस अब ड्राइवर को इन्तजार था सुबह के छः बजे का।
सभी लेबर सोने लगे और चौकीदार जागरण
के लिए तत्पर। आखिर उसे ही तो इन सभी लड़कों की और ट्रक की देख-भाल करनी थी। पर
देवम की तो रातों की नींद ही गायब हो चुकी थी। लगभग चार एक बजे चौकीदार अपने स्टूल
से उठा और अपने मोबाइल को स्टूल पर रख कर, शायद बाथ-रूम की ओर गया।
और यही ऐसा मौका था जिसकी देवम को
तलाश थी। बड़ी होशियारी से देवम ने वह मोबाइल उठा कर, एक कोंने में जाकर, अपने
पापा को फोन किया।
उधर सुबह के लगभग चार बजे देवम के
पापा के फोन की घण्टी बजी।
“ हाँ, हलो आप कौन
बोल रहे हैं ? ”
देवम के पापा ने पूछा।
“ हाँ, पापा मैं देवम बोल रहा
हूँ। ” देवम ने दबी आवाज में उत्तर दिया।
“ देवम तुम कहाँ हो ? ” देवम के पापा ने आतुरता के साथ पूछा।
देवम ने कहा, “ पापा, जरा ध्यान से सुनो। ये लोग मुझे पकड़ कर यहाँ लाए हैं ये जगह
अण्डर-ग्राउन्ड है और स्मगलिंग का काम होता है। यहाँ पर और भी बहुत से बच्चे हैं
जिन्हें ये मेरी तरह ही पकड़ कर यहाँ लाए हैं। यहाँ पर एक कार है जो शायद यहाँ के
मालिक-लोगों की है और जिसका नम्बर RJ-1-V 2555 है। आज सुबह
छः बजे एक ट्रक स्मगलिंग का सामान ले कर मुम्बई जाने वाला है जिसका नम्बर RJ-5-Q 5888 है। चौकीदार अभी बाथ-रूम गया है और मैं उसी के
मोबाइल से छुप कर बात कर पा रहा हूँ। बस, अब इस नम्बर पर बात मत करना। ”
इतना कह कर देवम ने फोन कट कर दिया
और बड़ी शीघ्रता से मोबाइल को स्टूल पर रख कर अपने स्थान पर आ कर सोने का नाटक
करने लगा। जैसे कुछ हुआ ही न हो। चौकीदार अभी तक नहीं आ पाया था। सुबह होते ही
चौकीदार ने ड्राइवर को ट्रक ले जाने के लिये कहा और साथ ही ट्रक के जाने की सूचना
मालिक-लोगों को भी दी। ड्राइवर ट्रक ले कर अपने गन्तव्य स्थान की ओर रवाना हो गया।
तब कहीं जा कर चौकीदार ने चैन की साँस ली।
देवम के पापा ने यह सूचना देने के लिए जब पुलिस
को फोन किया तो पुलिस-अफसर ने बताया कि ये सभी सूचनाएँ हमें प्राप्त हो गई है
क्योंकि आपका फोन हमारे वॉच पर है। अब आप बिलकुल भी चिन्ता न करें, हम शीघ्र ही
देवम तक पहुँच सकेंगे।
पुलिस की सतर्कता को देख कर देवम के
पापा के मन में प्रसन्नता भी हुई और राहत भी मिली। साथ ही उन्हें विश्वास भी हुआ
कि सतर्क पुलिस देवम तक पहुँचने में जरूर सफल होगी।
सूचना मिलते ही पुलिस हरकत में आ
गई। सबसे पहले तो उस मोबाइल नम्बर की लोकेशन का पता चलाया गया जहाँ से कि देवम ने
अपने पापा को फोन किया था। लोकेशन डूँगरपुर (राजस्थान) के आस-पास की थी। यह तो
निश्चय हो गया था कि देवम राजस्थान में ही है।
अब पुलिस ने राजस्थान के आर.टी.ओ.
विभाग से कार और ट्रक के रजिस्ट्रेशन नम्बर के आधार पर मालिकों के पते की जानकारी
प्राप्त कर की। इसके लिए एक दल को इन दोनों लोगों को पकड़ कर थाने में लाने के लिए
भेज दिया। पुलिस इन दोनों के अरेस्ट-वॉरेन्ट को साथ में लेकर ही गई। पुलिस कोई भी
कमी नहीं छोड़ना चाहती थी।
चूँकि दोनों वाहनों के रजिस्ट्रेशन
नम्बर राजस्थान आर.टी.ओ. के थे अतः राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के चेक-पोस्ट
और टोल-प्लाजा पर इन नम्बर के वाहनों को रोकने तथा ड्राइवर, क्लीनर आदि को पकड़ कर
हिरासत में लेने के लिये पुलिस को आदेश दे दिये गये। चेक-पोस्ट पर पुलिस ने
सतर्कता के साथ चैकिंग का काम शुरू कर दिया।
पुलिस भी इस मामले को गम्भीरता से
ले रही थी क्योंकि यह मामला बीस-पच्चीस लड़कों की किडनैपिंग का ही नहीं था बल्कि
स्मगलिंग और ड्रगस् की हेरा-फेरी का भी था। साथ ही इन लोगों की अन्तर्राष्ट्रीय-गिरोह
से जुड़े होने की सम्भावना भी थी। जिसकी पुलिस को काफी समय से तलाश भी थी। इन्हीं
लोगों की वजह से पुलिस की पहले भी किरकिरी हो चुकी थी और इस मौके को पुलिस हाथ से
नही जाने देना चाहती थी।
पुलिस की सतर्कता और सजगता के
फलस्वरूप ट्रक को राजस्थान बोर्डर पर श्यामला जी चेक-पोस्ट पर पकड़ लिया गया। माल
से भरे ट्रक, ड्राइवर, क्लीनर को हिरासत में ले लिया गया। तीन-चार घण्टे में पुलिस
देवम के पापा को साथ ले कर श्यामला जी चेक-पोस्ट पर पहुँच गई।
ड्राइवर को जब थर्ड डिग्री
टोर्चरिंग किया गया तो उसने सब कुछ पोपट की तरह उगल दिया। गोदाम का पता और जिस
मालिक के लिए वह काम करता था उसका पता और सभी ठिकाने, जो भी उसे पता थे, सब बता
दिये। साथ ही कई गोपनीय तथ्य भी उसने पुलिस को बताये। पुलिस ने ड्राइवर को साथ ले
कर लोकल पुलिस की सहायता से गोदाम पर छापा मारा।
भयभीत ड्राइवर ने पुलिस को
अन्डर-ग्राउड तहखाने तक पहुँचा दिया और उस जगह पर पहुँचा दिया जहाँ से रात को ट्रक
लोड किया गया था। ड्राइवर साथ न होता तो पुलिस का वहाँ तक पहुँचना सम्भव ही नहीं
था।
लगभग बीस-पच्चीस लड़के भी काम करते
हुए पाये गये। चौकीदार और उसके मोबाइल को भी पुलिस ने अपनी हिरासत में ले लिया।
वहाँ के सभी स्टाफ को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। पुलिस को अतिरिक्त सुरक्षा-बल
भी बुलाना पड़ा। पुलिस ने गोदाम को सील कर दिया और अपने संरक्षण में ले लिया।
असल में यह एक फार्म-हाउस में था।
जिसके अन्दर कार-गैरेज के रास्ते से अन्डर-ग्राउन्ड गोदाम में जाने का रास्ता
बनाया हुआ था और अन्डर-ग्राउन्ड गोदाम के अन्दर ही इनकी सभी गतिविधियाँ चलती रहतीं
थी। यहीं पर इन लड़कों को भी रखा जाता था और काम करवाया जाता था। गोपनीयता रखने के
कारण किसी को भी बाहर नहीं जाने दिया जाता था।
उधर कार और ट्रक के मालिक को पकड़ने
में पुलिस कामयाब हो गई। उन्हें भी पकड़ कर थाने में लाया गया। दूसरे दिन सभी
पकड़े गये आरोपियों को पुलिस ने कोर्ट में प्रस्तुत कर न्यायालय से दस दिन की
रिमाण्ड का समय माँगा। जिसे माननीय न्यायालय ने स्वीकार कर लिया। कानून ने अपना
काम करना शुरू कर दिया था।
देवम के वयान पुलिस ने लिये। साथ ही
गोदाम में पकड़े गये सभी लड़कों के वयान भी कोर्ट में दर्ज कराये गये। और जब भी
आवश्यकता पड़े तब कोर्ट में हाजिर होने की शर्त पर सभी लड़कों को घर जाने का आदेश
दिया गया। बाकी सभी स्टाफ को पुलिस की कस्टडी में भेज दिया गया।
जिन लड़कों को ये लोग किडनैपिंग
करके लाये थे उन सभी लड़कों को जब सारी घटना की जानकारी हुई तो सभी ने देवम के
साहस और दूरदर्शिता की खूब-खूब प्रशंसा की। और चौकीदार अपनी मूर्खता पर रो रहा था।
सभी लड़के के घर पर सम्पर्क किया
गया। अपने परिवार वालों से मिल कर वे बहुत-बहुत खुश थे। इनमें से बहुत से
माता-पिता तो ये मान चुके थे कि अब वे अपने बच्चों को नहीं पा सकेंगे। उनकी तो
उजड़ी हुई दुनियाँ ही फिर से खुश-खुशहाल हो गई थी। और वे देवम को खूब-खूब तहे-दिल
से धन्यबाद दे रहे थे। रेगिस्तान बनी आँखों में फिर से गंगा-जमुना बह निकलीं थीं।
देवम की समझदारी, दूर-दर्शिता और
साहस-पूर्ण कदम के परिणाम-स्वरूप ही पुलिस अन्तर्राष्ट्रीय-गिरोह तक पहुँच पाई और
तस्करों को पकड़ने में कामयाब हो सकी। साथ ही किडनैपिंग किये गये लड़कों को
अन्तर्राष्ट्रीय-गिरोह के चंगुल से छुड़ाने में कामयाब हो सकी।
मीडिया का भारी जमाबड़ा पहुँच गया
था घटना-स्थल पर। अन्तर्राष्ट्रीय-गिरोह और तस्करों के पकड़े जाने की खबर, और वह
भी करोड़ों रुपये के माल-सामान के साथ। इतनी बड़ी सफलता का रहस्य सभी जानना चाहते
थे। सभी उस बालक को देखने के लिये लालायित थे जिसकी बहादुरी की जितनी प्रशंसा की
जाय, कम ही होगी।
प्रिन्ट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने
देवम का इन्टरव्यू लिया। देवम ने उनके सभी प्रश्नों के सन्तोष-जनक उत्तर दिये। साथ
ही जो कुछ भी उसका वहाँ का अनुभव था, वह उसने मीडिया के साथ शेयर किया।
मीडिया वालों ने जब देवम से पूछा कि आप अपना कोई
सन्देश जनता को देना चाहेंगे।
तो
देवम ने कहा, “ चाहे कैसी भी परिस्थिति क्यों न हो हमें अपने आप पर और अपनी शक्ति पर
सदैव भरोसा रखना चाहिये। संघर्षों से कभी भी घबराना नहीं चाहिये।
दूसरे दिन सभी समाचार-पत्रों में
फोटो के साथ बहादुर देवम की बहादुरी की चर्चा थी।
टी.वी. और चेनल वालों ने देवम के
इन्टरव्यू को विशेष कबरेज के साथ टेलीविज़न पर दिखाया।
देवम के मम्मी-पापा का मन हर्ष और
विषाद से भरा हुआ था। विषाद इस बात का था कि देवम को इतने दिनों तक, इतने कष्टों
का सामना करना पड़ा, तरह-तरह की यातनाओं को सहना पड़ा। व्याकुल मन रो पड़ा था देवम
के पापा का।
और प्रसन्नता इस बात की थी कि
बीस-पच्चीस किडनैपिंग किये गये लड़कों को अन्तर्राष्ट्रीय-गिरोह के चंगुल से
छुड़वा कर उन्हें उनके परिवार के बीच पहुँचा दिया। यह भागीरथ पुण्य कार्य मन के
सन्तोष के लिये पर्याप्त था।
इतना ही नहीं देवम ने
अन्तर्राष्ट्रीय-गिरोह के तस्करों और ड्रगस्-माफियाओं को कानून के हवाले कर,
करोड़ों रुपये के माल-सामान को सरकार तक पहुँचा कर, जो साहस और दूर-दर्शिता का
परिचय दिया, उससे परिवार प्रसन्न था।
देवम का उसके स्कूल में सम्मान किया
गया और प्रिंसीपल मैडम ने देवम की समझदारी, दूरदर्शिता और साहस-पूर्ण कदम की
सराहना की।
देवम के मम्मी-पापा खुश थे और
उन्हें अपने देवम पर गर्व है।
*****
...आनन्द
विश्वास
साहसपूर्ण और प्रेरक कथा के लिए बधाई विश्वास जी। उम्मीद है कि पूरा उपन्यास इसी तरह की प्रेरक कथाओं का विकास प्रस्तुत करेगा। 'मालिक लोगों ने चौकीदार को हिदायत दी…' वाले पैरा में 'बाहर' को गलती से 'बारह' लिख दिया गया है, उसे ठीक कर दें।
ReplyDeleteबलराम जी,
ReplyDeleteआपका परामर्शन निश्चय ही सराहनीय है।
*बारह* को सुधार कर *बाहर* कर दिया है।
अपना स्नेह बनाये रखियेगा, आपका स्नेह
ही मेरी शक्ति है।
धन्यवाद।
आनन्द विश्वास