*बगीचा*
मेरे घर में बना बगीचा,
हरी घास ज्यों बिछा
गलीचा।
गेंदा, चम्पा और चमेली,
लगे मालती कितनी प्यारी।
मनीप्लान्ट आसोपालव से,
सुन्दर लगती मेरी क्यारी।
छुई-मुई की अदा अलग
है,
छूते ही नखरे दिखलाती।
रजनीगंधा की बेल निराली,
जहाँ जगह मिलती चढ़ जाती।
तुलसी का गमला
है न्यारा,
सब रोगों को दूर भगाता।
मम्मी हर दिन अर्ध्य
चढ़ाती,
दो पत्ते तो मैं भी खाता।
दिन में सूरज, रात को चन्दा,
हर रोज़ मेरी बगिया आते।
सूरज से ऊर्जा मिलती है,
शीतलता मामा दे जाते।
रोज़ सबेरे हरी
घास पर,
मैं नंगे पाँव
टहलता हूँ।
योगा प्राणायाम और फिर,
हल्की जोगिंग करता हूँ।
दादा जी आसन सिखलाते,
और ध्यान भी करवाते हैं।
प्राणायाम, योग वो करते,
और मुझे भी बतलाते
हैं।
और शाम को चिड़िया-बल्ला,
कभी-कभी तो कैरम होती।
लूडो, सांप-सीढ़ी भी होती,
या दादा जी से
गप-सप होती।
फूल कभी मैं नहीं तोड़ता,
देख-भाल मैं खुद ही करता।
मेरा बगीचा मुझको भाता,
इसको साफ सदा मैं रखता।
जग भी तो है एक
बगीचा,
हरा-भरा इसको करना है।
पर्यावरण सन्तुलित
कर,
धरती को हमें बचाना
है।
...आनन्द
विश्वास