Sunday, 26 June 2016

"चाचू की शादी में हमने"


चाचू  की  शादी  में  हमने, खूब  मिठाई  खाई।
नाचे - कूदे,  गाने  गाएजमकर   मौज  मनाई।
आगे-आगे बैण्ड बजे थे,
पीछे  बाजे  ताशे।
घोड़ी पर  चाचू  बैठे थे,
हम थे उनके आगे।
तरह-तरह की फिल्मी धुन थीं और बजी शहनाई।
चाचू  की  शादी   में  हमने,  खूब  मिठाई  खाई।
नाना  नाचे, नानी  नाचीं,
नाचीं   चाची  ताई।
दादा-दादी ने फिर जमकर,
डिस्को डांस दिखाई।
आतिशबाजी बड़े गज़ब की, सबके मन को भाई।
चाचू  की  शादी  में  हमने,  खूब  मिठाई  खाई।
दरबाजे  पर  धूम-धड़ाका,
नाचे सभी बराती।
स्वागत करने सभी वहाँ थे,
रिश्तेदार  घराती।
चाची जी  ने चाचा जी को, वर-माला  पहनाई।
चाचू  की  शादी  में  हमने,  खूब  मिठाई  खाई।
खाने के तो, क्या थे कहने,
कुछ मत पूछो भाया।
काजू किसमिश मेवे वाला,
हलवा  हमने  खाया।
कहीं चाँट थी  दिल्ली वाली, और  कहीं  ठंडाई।
चाचू  की  शादी  में  हमने,  खूब  मिठाई  खाई।
काजू-पूरी,दाल मखनियाँ,
और नान तन्दूरी।
छोले  और  भटूरे  ने  तो,
कर दी टंकी पूरी।
दही-बड़े की डिश चाची ने, जबरन हमें खिलाई।
चाचू  की  शादी  में  हमने,  खूब  मिठाई  खाई।
और रात  को  फेरे-पूजा,
छन की  बारी  आई।
चाचा जी भी बड़े चतुर थे,
छन की झड़ी लगाई।
मौका  पाकर  साली जी  ने,  जूती  लई  चुराई।
चाचू  की  शादी  में  हमने,  खूब  मिठाई  खाई।
भोर  हुआ तब  धीरे-धीरे,
समय विदा का आया।
दरबाजे पर कार खड़ी थी,
सबका मन भर आया।
सबकी आँखे भर  आईं  जब, होने  लगी विदाई।
चाचू  की  शादी  में  हमने,  खूब  मिठाई  खाई।
यूँ तो मुझको बड़ी खुशी थी,
फिर भी  रोना आया।
रोना और बिलखना सबका,
मैं तो  सह  ना पाया।
सारी खुशियाँ छूमंतर थीं, सुनकर शब्द विदाई।
चाचू  की  शादी  में  हमने, खूब  मिठाई  खाई।
***
-आनन्द विश्वास

Tuesday, 14 June 2016

"आँधी ने तो हद ही कर दी"

आँधी ने  तो हद  ही कर दी, 
धूल आँख में सबके  भर दी।
धुप्प   अँधेरा   काली  आँधी,
दिन में काली रात दिखा दी।

कचरा-पचरा   खूब  उड़ाया,
फिर पेड़ों  का नम्बर आया।
बड़े-बड़े   जो   पेड़  खड़े  थे,
सब ने  देखा,  गिरे  पड़े  थे।

कुछ टूटे, कुछ  गिरे थे खम्बे,
ऊँचे  थे  अब  दिखते  लम्बे।
आँधी-अँधड़  जबरदस्त  था,
सारा जग हो गया त्रस्त था।

आए  दिन  आँधी जब  आए,
रौद्र-रूप जब प्रकृति दिखाए।
रौद्र-प्रकृति की समझो भाषा,
उसकी  भी  है, तुमसे आशा।

ज्यादा बारिश,बादल फटना,
शुभ  सन्देश  नहीं  ये घटना।
कहीं  सुनामी  की  चर्चा  हो,
हद से  ज्यादा जब  वर्षा हो।

समझो सब कुछ सही नहीं है,
अनहोनी कुछ,  यहीं कहीं है।
सावधान  अब  होना  होगा,
वरना सब कुछ खोना होगा।

जागो,  अभी  समय  है  भैया,
क्रोधित  है  अब  धरती-मैया।
सोचो मिलकर, ऐसा कुछ  हो,
हमभी खुश हों धरती खुश हो।

आओ   मिलकर बाग  लगाएं,
रूँठी    धरती,   उसे   मनाएं।
चहुँ-दिश जब हरियाली होगी,
सूरत   बड़ी   निराली  होगी।

धरती का कण-कण हँस लेगा,
सृष्टि-सन्तुलन खुद सम्हलेगा।
धरा    हँसेगी,   सृष्टि   हँसेगी,
शीतल  स्वच्छ  समीर बहेगी
-आनन्द विश्वास

Monday, 6 June 2016

"ऊँचे-ऊँचे लोगों के"

ऊँचे - ऊँचे   लोगों  के अब,
घटिया सुनो वयान, रामजी।
न्याय-प्रिय जनता के अब तो,
खटिया पर हैं प्राण, रामजी।

साधू  संतों   वाली   वाणी,
सुनने से डरता  अब प्राणी।
विषधर से ज्यादा विषमय,
लेकर फिरते ज्ञान, रामजी।

बक-बक करते सारे दिनभर,
दोष मढ़े  दूजों के  सिर पर।
चौथा खम्बा  धरे  जेब में,
डोलें  ये  श्रीमान, रामजी।

गोली की  बोली  ये बोलें,
पैसे  के  पीछे  ये  हो  लें।
गड़-बड़झाला  करने  वाले,
चलते सीना तान, रामजी।

जोड़-तोड़  करने  वालों ने,
तोड़-फोड़  करने  वालों ने।
आग लगादी दुनियाँ भर को,
व्याकुल वेद-कुरान,रामजी।

ऐसे   में   कैसे   हम  जी  लें,
व्याकुल-मन कैसे लव सीं लें।
सन्नाटा   है    गली-गली   में,
कुछ तो करो निदान,रामजी।  
 -आनन्द विश्वास