Friday, 26 December 2014

*सूरज दादा कहाँ गए तुम*

*सूरज दादा कहाँ गए तुम*
...आनन्द विश्वास


सूरज  दादा  कहाँ   गए  तुम,
काह ईद  का  चाँद  भए तुम।
घना   अँधेरा,  काला - काला,
दिन निकला पर नहीं उजाला।
कोहरे   ने  कोहराम  मचाया,
पारा  गिर  कर  नीचे  आया।
काले  बादल   जिया   डराते,
हॉरर-शो  सा  दृश्य  दिखाते।
बर्षा  रानी   आँख   दिखाती,
झम झम झम पानी बरसाती।
काले – काले    बादल   आते,
उमड़-घुमड़  कर शोर मचाते।
नन्हीं - नन्हीं  बूँद  कभी  तो,
कभी ज़ोर  की  बारिश लाते।
सर्द  हवाऐं,  शीत  लहर  है,
बे-मौसम  बरसात, कहर  है।
*टच मी नॉट* कहे  अब पानी,
*बाहर ना जा* कहती  नानी।
कट - कट दाँत  बजाते बाजा,
मौसम  अपना  बैण्ड बजाता।
सड़क,  गली,  कूँचे,  चौबारे,
सब   सूने  हैं   ठंड  के  मारे।
फुट - पाथी,   बेघर,  बेचारे,
इन सबके  तो  तुम्हीं  सहारे।
अब तो  सुन लो, सूरज दादा,
कल  आने  का  दे  दो  वादा।

...आनन्द विश्वास
http://anandvishwas.blogspot.in/2014/12/blog-post.html

5 comments:

  1. सार्थक प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (28-12-2014) को *सूरज दादा कहाँ गए तुम* (चर्चा अंक-1841) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सुन्दर बाल रचना ...सूरज दादा को भी आराम करना है ...

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  3. सुन्दर प्रस्तुति

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  4. बहुत सुंदर, सर्दी की मोहक बाल कविता।

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  5. खूबसूरत। बचपन याद आ गया।

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