*सूरज दादा कहाँ गए तुम*
...आनन्द विश्वास
सूरज दादा
कहाँ गए तुम,
काह
ईद का
चाँद भए तुम।
घना अँधेरा,
काला - काला,
दिन
निकला पर नहीं उजाला।
कोहरे ने कोहराम मचाया,
पारा गिर
कर नीचे आया।
काले बादल
जिया डराते,
हॉरर-शो सा दृश्य दिखाते।
बर्षा रानी
आँख दिखाती,
झम
झम झम पानी बरसाती।
काले
– काले बादल
आते,
उमड़-घुमड़
कर शोर मचाते।
नन्हीं
- नन्हीं बूँद कभी तो,
कभी
ज़ोर की
बारिश लाते।
सर्द हवाऐं,
शीत लहर है,
बे-मौसम बरसात, कहर है।
*टच
मी नॉट* कहे अब पानी,
*बाहर ना जा* कहती नानी।
कट
- कट दाँत बजाते बाजा,
मौसम अपना
बैण्ड बजाता।
सड़क, गली,
कूँचे, चौबारे,
सब सूने
हैं ठंड
के मारे।
फुट
- पाथी, बेघर, बेचारे,
इन
सबके तो तुम्हीं
सहारे।
अब
तो सुन लो, सूरज दादा,
कल आने का
दे दो
वादा।
...आनन्द विश्वास
http://anandvishwas.blogspot.in/2014/12/blog-post.html
http://anandvishwas.blogspot.in/2014/12/blog-post.html
सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (28-12-2014) को *सूरज दादा कहाँ गए तुम* (चर्चा अंक-1841) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर बाल रचना ...सूरज दादा को भी आराम करना है ...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुंदर, सर्दी की मोहक बाल कविता।
ReplyDeleteखूबसूरत। बचपन याद आ गया।
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