Tuesday, 20 March 2012

गंगाजल तुम पी न सकोगे


 गंगाजल तुम पी न सकोगे

जागो   भैया  अभी  समय  है,
वर्ना  तुम  भी  जी  न सकोगे।
गंगा   का   पानी    दूषित  है,
गंगाजल  तुम  पी  न  सकोगे।

सागर में  अणु-कचड़ा  इतना,
जल-चर  का  जीना  दूबर है।
सागर  मंथन  हुआ  कभी तो,
कामधेनु  तुम  पा  न सकोगे।

पाँच  तत्व  से  निर्मित होता,
मानव-तन  अनमोल रतन है।
चार  तत्व   दूषित  कर डाले,
जाने   कैसा   मूर्ख  जतन  है।

दूषित जल है, दूषित  थल है,
दूषित  वायु   और  गगन  है।
सत्यानाश   किया  सृष्टि  का,
फिर भी कैसा आज मगन है।

अग्नि-तत्व  अब  भी बाकी है,
इसका भी  क्या नाश करेगा।
या  फिर इसमें भस्मिभूत हो,
अपना  स्वयं  विनाश करेगा।

मुझे  बचा  लो,  सृष्टि  रो पड़ी,
ये  मानव   दानव  से  बदतर।
अपना  नाश  स्वयं  ही  करता,
है भस्मासुर या उसका सहचर।

देख   दुर्दशा   चिंतित  भोले,
गंगा   नौ-नौ   आँसू   रोती।
गंगा-पुत्र  उठो,  जागो  तुम,
भीष्म-प्रतिज्ञा  करनी होगी।

धरती-पुत्र आज  धरती क्या,
सृष्टि  पर  संकट   छाया  है।
और   सुनामी,   भूकम्पों  से,
मानव  जन  मन  थर्राया है।

मुझे बता  दो  हे  मनु-वंशज,
क्या पाया  था तुमने मनु से।
ये   पीढी  है   आज   पूछती,
क्या  दे   कर   तुम  जाओगे।

...आनन्द विश्वास

Sunday, 11 March 2012

वर्तमान ना व्यर्थ गँवाना.

वर्तमान ना व्यर्थ गँवाना.

पीछे  मुड़ कर कभी न देखो, आगे ही तुम  बढ़ते जाना,
उज्वल कल है तुम्हें बनाना,वर्तमान ना व्यर्थ गँवाना।
संधर्ष आज  तुमको करना है,
मेहनत में  तुमको खपना है।
दिन और रात  तुम्हारे अपने,
कठिन  परिश्रम   में तपना है।
फौलादी  आशाऐं  लेकर, तुम लक्ष्य प्राप्ति करते जाना,
पीछे  मुड़ कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना।
इक-इक पल है  बहुत कीमती,
गया समय  वापस  ना आता।
रहते  समय  न  जागे तुम तो,
जीवन  भर  रोना रह  जाता।
सत्यवचन सबको खलता है मुश्किल है सच को सुन पाना
पीछे  मुड़ कर कभी  न देखो, आगे  ही तुम  बढ़ते जाना।
बीहड़  बीयावान   डगर  पर,
कदम-कदम  पर शूल मिलेंगे।
इस   छलिया  माया नगरी में,
अपने   ही  प्रतिकूल   मिलेंगे।
गैरों की तो बात छोड़ दो, अपनों से मुश्किल बच पाना,
पीछे  मुड़ कर कभी न देखो, आगे  ही तुम बढ़ते जाना।
कैसे   ये    होते    हैं   अपने,
जो सपनों को तोड़ा करते हैं।
मुश्किल में हों आप अगर तो,
झटपट  मुँह  मोड़ा  करते  हैं।
एक ईश जो साथ तुम्हारे, उसके तुम हो कर रह जाना,
पीछे  मुड़ कर कभी न देखो, आगे ही  तुम बढ़ते जाना।

-आनन्द विश्वास

Thursday, 1 March 2012

20 वाँ विश्व पुस्तक मेला

20 वाँ विश्व पुस्तक मेला
प्रगति मैदान दिल्ली
में
डायमंड बुक्स
से
प्रकाशित
आनन्द विश्वास
की
पुस्तक
*मिटने वाली रात नहीं*
विक्रय के लिये
उपलब्ध
है।