गंगाजल
तुम पी न सकोगे
जागो
भैया
अभी समय है,
वर्ना
तुम भी जी न सकोगे।
गंगा
का
पानी
दूषित
है,
गंगाजल
तुम पी न सकोगे।
सागर
में अणु-कचड़ा इतना,
जल-चर
का जीना दूबर है।
सागर
मंथन हुआ कभी
तो,
कामधेनु
तुम पा न
सकोगे।
पाँच
तत्व से निर्मित
होता,
मानव-तन
अनमोल रतन है।
चार
तत्व दूषित कर डाले,
जाने
कैसा
मूर्ख जतन है।
दूषित
जल है, दूषित थल है,
दूषित
वायु और गगन है।
सत्यानाश
किया
सृष्टि का,
फिर
भी कैसा आज मगन है।
अग्नि-तत्व
अब भी बाकी है,
इसका
भी क्या नाश करेगा।
या
फिर इसमें भस्मिभूत हो,
अपना
स्वयं विनाश करेगा।
मुझे
बचा लो, सृष्टि
रो पड़ी,
ये
मानव दानव से बदतर।
अपना
नाश स्वयं ही
करता,
है
भस्मासुर या उसका सहचर।
देख
दुर्दशा चिंतित भोले,
गंगा
नौ-नौ
आँसू
रोती।
गंगा-पुत्र
उठो, जागो तुम,
भीष्म-प्रतिज्ञा
करनी होगी।
धरती-पुत्र
आज धरती क्या,
सृष्टि
पर संकट छाया है।
और
सुनामी,
भूकम्पों
से,
मानव
जन मन थर्राया
है।
मुझे
बता दो हे मनु-वंशज,
क्या
पाया था तुमने मनु से।
ये
पीढी
है आज पूछती,
क्या
दे कर तुम जाओगे।
...आनन्द
विश्वास