चलो कहीं पर
घूमा जाए,
थोड़ा मन
हल्का हो जाए।
सबके अपने -अपने
ग़म हैं,
किस ग़म को कम आँका जाए।
अनहोनी को
होना होता,
पागल मन
को कौन बताए।
आँखों में
सागर छलका है,
खारा जल
बहता ही जाए।
कैसे पल
हैं, भीगी पलकें,
गीली आँखें
कौन सुखाए।
कहाँ गये
हैं जाने वाले,
चलो किसी
से पूछा जाए।
आना-जाना नियति सृष्टि की,
गये हुये
को कौन बुलाए।
तुम तो चले गये निर्मोही,
बीता कल, मन भुला न पाए।
-आनन्द विश्वास