अगर पेड़
पैसों के होते,
घर-घर
पेड़ लगे तब होते।
तेरे, मेरे, सबके
घर में,
पैसे रोज़
टपकते होते।
फिर
कोई ना निर्धन होता,
पैसे सभी
संजोते होते।
डालर,
यूरो, येन
कहीं तो,
कहीं
पाँच-सौ वाले होते।
पेड़ों
का सब रक्षण करते,
कहीं
पेड़ ना कटते होते।
शुद्ध-वायु
ना दुर्लभ होती,
कोविड
जैसे रोग ना होते।
हरी-भरी
धरती होती तो,
नहीं
फेफड़े जर्जर होते।
पाँच-तत्व
पैसों से बढ़कर,
काश
बात हम समझे होते।
पशु-पक्षी
हर्षित मन होते,
चारों
ओर चहकते होते।
पेड़
लगाओ,धरा
बचाओ,
शुद्ध वायु
पैसे ही होते।
-आनन्द
विश्वास, दिल्ली।