Thursday, 30 January 2020

बसन्त-पंचमी के पावन-पर्व पर

खेत-खेत   में   सरसों  झूमें,  सर-सर    वहे   वयार।
मस्त पवन के संग-संग आया, मधुऋतु का त्योहार।
धानी  रंग  से  रंगी  धरा,
परिधान   वसन्ती  ओढ़े।
हर्षित मन  ले  लजवन्ती,
मुस्कान  वसन्ती    छोड़े।
चारों  ओर   वसन्ती  आभाहर्षित   हिया  हमार।
मस्त पवन के संग-संग आया, मधुऋतु का त्योहार।
सूने-सूने   से  पतझड़   को,
आज वसन्ती  प्यार मिला।
प्यासे-प्यासे  से  नयनों को,
जीवन का  आधार  मिला।
मस्त  पवन हैमस्त  गगन हैमस्ती का अम्बार।
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
ऐसा  लगे   वसन्ती  रंग  से,
धरा की हल्दी आज चढ़ी हो।
ऋतुराज  ब्याहने आ  पहुँचा,
जाने की जल्दी आज पड़ी हो।
और कोकिला  कूँक-कूँककर, गाए मंगल ज्योनार।
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
पीली  चूनर ओढ़  धरा अब,
कर   सोलह   श्रृंगार   चली।
गाँव-गाँव    में   गोरी   नाँचें,
बाग-बाग    में  कली-कली।
या  फिर  नाँचें   शेषनाग पर, नटवर  कृष्ण  मुरार।
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
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