‘बहादुर
बेटी’ (बाल-उपन्यास)
कहानी
है एक
ऐसी
बहादुर
बेटी की...
1. जिसने
पीएम के ड्रीमलाइनर विमान को आतंकवादियों के चंगुल से मुक्त कराया।
2. जिसने
अपनी दूरदर्शिता से तीन-तीन खूँख्वार आतंकवादियों को सरकार के हवाले कर दिया
जिन्हें पकड़ने के लिए सरकार ने एक-एक करोड़ का इनाम घोषित किया हुआ था।
3. जिसने
घाटी में से आतंकवादियों और उनके आतंकी अड्डों को तहस-नहस कर डाला।
4. जिसने
पुस्तक और पैन को घर-घर तक पहुँचाकर घाटी में विकास की नई गाथा लिख दी।
5. जिसने
घाटी के रैड-ब्लड ज़ोन का विकास कर देशी और विदेशी इन्वैस्टर्स के लिए रैड-कॉर्पेटस्
बिछवा दिए।
6. जिसकी
बदौलत एके-47 थामने वाले सशक्त युवा हाथों में आज ऐंड्रोंयड-वन आ गए।
7. जिसकी
बदौलत रायफल्स की ट्रिगर पर घूमने वाली सशक्त युवा-हाथों की अंगुलियाँ अब
कॉम्प्यूटर और लैपटॉप के की-बोर्ड के साथ खेलने लगीं।
8. जिसने
अपने साथियों के साथ मिलकर अनेक चैरिटी-शो करके स्लम-एरिया में रहने वाले गरीब और
अनाथ बच्चों के लिए फ्री-रेज़ीडेन्शियल स्कूल खोले।
9. जिसने
अपने स्कूल का उद्घाटन पीएम श्री से करवाया और जिससे प्रेरणा लेकर स्वयं पीएम श्री
ने भी हर स्टेट में इसी प्रकार के फ्री-रेज़ीडेन्शियल स्कूल खुलवाए।
10.जिसने
बेटी पढ़ाओ और देश बढ़ाओ आन्दोलन को गतिशील बनाया। उसका कथन था..
बेटा शिक्षित, आधी शिक्षा,
बेटी शिक्षित, पूरी
शिक्षा।
11.
जिसने बेटी के शिक्षा और सुरक्षा के अभियान को घर-घर तक पहुँचाकर सशक्त बनाया।
उसका कहना था कि...
हार जाओ
भले, हार मानो नहीं।
तन
से हारो भले, मन से हारो नहीं।
12.
तभी तो प्रेस और मीडिया की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में देश की बहादुर बेटी आरती बोल
रही थी और पीएम का मन पिघल रहा था।
13.
विशाल देश के सशक्त पीएम की आँखों में पहली बार आँसू देखे गए। उन्हें रह-रह कर बस,
यही ख्याल आ रहा था कि देश के बच्चे जिस काम को करने का मन बना सकते हैं और कुछ
करने का बीड़ा भी उठा सकते हैं तो हम लोग इतनी बड़ी सत्ता और सामर्थ्य के होते हुए
भी, उन स्लम-एरिया में रहने वाले गरीब बच्चों के उत्थान के विषय में, क्या सोच भी
नहीं सकते।
14.
और मैं भी तो उसी तरह के बच्चों में से एक बच्चा हूँ जिसने अपने संघर्ष-मय जीवन के
सफर की शुरुआत ही, स्लम-एरिया की उस छोटी-सी झोंपड़ी से की थी। वह भी तो कभी
स्लम-एरिया में ही रहकर अपनी गुजर-बसर किया करता था और लैम्प-पोस्ट के नीचे टाट के
बोरे पर बैठकर ही तो अक्सर गणित के सवाल किया करता था।
15.
बाल-उपन्यास की हर घटना अपने आप में रोचक बन पड़ी है और पाठक-गण को चिन्तन, मनन और
सोचने के लिये विवश करेगी।
-आनन्द विश्वास