Thursday, 6 March 2025

"बात करो दिल खोल कर"

अच्छा बोलो, सच्चा बोलो, बात करो दिल खोल कर,

सबको वश  में  कर सकते हो, मीठी  वीणी  बोल कर।

सच के  साथ  ज़मीर तुम्हारा,

खड़ा  साथ   में  सदा  रहेगा।

युगों-युगों  तक  हरिश्चन्द्र सा,

बात  तुम्हारी  सदा   कहेगा।

स्वर्ण-कोकिला यश  गाएगी, डाल-डाल  पर डोल कर,

अच्छा बोलो, सच्चा बोलो, बात करो दिल खोल कर।

सच के  साथ सदा जग होता,

झूँठा  सदा  बिना  पग  होता।

सत्य-न्याय-पथ चलने वाला,

भरी  सभा  अंगद-पग  होता।

सारे जग में  छा  सकते हो, सत्य-बचन  तुम  बोल कर,

अच्छा बोलो, सच्चा बोलो, बात करो दिल खोल कर।

सत्य - मार्ग कंटक मय होता,

तेज  धार  पर  चलना  होता।

फिसलन भरी  राह माया की,

पग-पग जहाँ सम्हलना होता।

फौलादी  चट्टान   सरीखे,  हर  पग  रखना  तोल  कर,

अच्छा बोलो,सच्चा बोलो,बात करो दिल खोल कर।

अन्दर - बाहर  बनो एक  सम,

मन-दर्पण को स्वच्छ बनाओ।

जो दिल में हो, वो मुख पर हो,

सुचिता  निज कर्मों  में लाओ।

अच्छे-अच्छे  कर्म  करो  तुम, मनवा  जरा  टटोल कर,

अच्छा बोलो, सच्चा बोलो, बात करो दिल खोल कर।

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Saturday, 1 March 2025

“बात करो दिल खोल कर”

अच्छा बोलो, सच्चा बोलो, बात करो दिल खोल कर,

सबको वश  में कर  सकते हो, मीठी  वीणी बोल कर।

सच  के  साथ  ज़मीर तुम्हारा,

खड़ा सदा साथ में सदा रहेगा।

युगों - युगों तक  हरिश्चन्द्र सा,

बात  तुम्हारी   सदा   कहेगा।

निर्भय होकर सच  तुम बोलो, शब्द-शब्द को तोल कर,

अच्छा बोलो, सच्चा बोलो, बात करो दिल खोल कर।

सच के  साथ सदा जग होता,

झूँठा  सदा  बिना  पग  होता।

सत्य-न्याय-पथ चलने वाला,

भरी  सभा  अंगद-पग  होता।

सारे  जग  में छा  सकते हो, सत्य-बचन  तुम  बोल कर,

अच्छा बोलो, सच्चा बोलो, बात करो दिल खोल कर।

अन्दर-बाहर  बनो  एक  सम,

मन दर्पण सा स्वच्छ बनाओ।

कोई उंगली  उठे    तुम  पर,

सुचिता निज कर्मो  में लाओ।

अच्छे-अच्छे  कर्म  करो  तुम, मनवा  जरा  टटोल कर,

अच्छा बोलो, सच्चा बोलो, बात करो दिल खोल कर।

-आनन्द विश्वास, दिल्ली

Wednesday, 26 February 2025

“अगर पेड़ पैसों के होते”

अगर  पेड़  पैसों  के  होते,

घर-घर पेड़ लगे तब होते।

तेरे,  मेरे,  सबके  घर  में,

पैसे   रोज़  टपकते  होते।

फिर कोई ना निर्धन होता,

पैसे  सभी   संजोते  होते।

डालर, यूरो, येन कहीं तो,

कहीं पाँच-सौ वाले होते।

पेड़ों का सब रक्षण करते,

कहीं पेड़ ना कटते  होते।

शुद्ध-वायु ना दुर्लभ होती,

कोविड जैसे रोग ना होते।

हरी-भरी धरती होती तो,

नहीं फेफड़े  जर्जर  होते।

पाँच-तत्व पैसों से बढ़कर,

काश बात हम समझे होते।

पशु-पक्षी हर्षित मन होते,

चारों ओर  चहकते होते।

पेड़ लगाओ,धरा बचाओ,

शुद्ध  वायु  पैसे  ही  होते।

-आनन्द विश्वास, दिल्ली