Tuesday, 14 June 2016

"आँधी ने तो हद ही कर दी"

आँधी ने  तो हद  ही कर दी, 
धूल आँख में सबके  भर दी।
धुप्प   अँधेरा   काली  आँधी,
दिन में काली रात दिखा दी।

कचरा-पचरा   खूब  उड़ाया,
फिर पेड़ों  का नम्बर आया।
बड़े-बड़े   जो   पेड़  खड़े  थे,
सब ने  देखा,  गिरे  पड़े  थे।

कुछ टूटे, कुछ  गिरे थे खम्बे,
ऊँचे  थे  अब  दिखते  लम्बे।
आँधी-अँधड़  जबरदस्त  था,
सारा जग हो गया त्रस्त था।

आए  दिन  आँधी जब  आए,
रौद्र-रूप जब प्रकृति दिखाए।
रौद्र-प्रकृति की समझो भाषा,
उसकी  भी  है, तुमसे आशा।

ज्यादा बारिश,बादल फटना,
शुभ  सन्देश  नहीं  ये घटना।
कहीं  सुनामी  की  चर्चा  हो,
हद से  ज्यादा जब  वर्षा हो।

समझो सब कुछ सही नहीं है,
अनहोनी कुछ,  यहीं कहीं है।
सावधान  अब  होना  होगा,
वरना सब कुछ खोना होगा।

जागो,  अभी  समय  है  भैया,
क्रोधित  है  अब  धरती-मैया।
सोचो मिलकर, ऐसा कुछ  हो,
हमभी खुश हों धरती खुश हो।

आओ   मिलकर बाग  लगाएं,
रूँठी    धरती,   उसे   मनाएं।
चहुँ-दिश जब हरियाली होगी,
सूरत   बड़ी   निराली  होगी।

धरती का कण-कण हँस लेगा,
सृष्टि-सन्तुलन खुद सम्हलेगा।
धरा    हँसेगी,   सृष्टि   हँसेगी,
शीतल  स्वच्छ  समीर बहेगी
-आनन्द विश्वास

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