Thursday 31 January 2013

*देवम की चतुराई*



*देवम की चतुराई*
(देवम बाल-उपन्यास)
से

बहुत दिनों से देवम और उसकी मम्मी की इच्छा सोमनाथ-दर्शन की हो रही थी। पर कभी तो देवम के पापा के ऑफिस का काम, तो कभी देवम की पढ़ाई। बस, प्रोग्राम बन ही नहीं पाता था।
पर इस बार तो सभी रास्ते साफ थे। कोई भी रुकाबट नहीं थी और ऊपर से श्रावण मास। उस ऊपर वाले की लीला ही निराली है। वैसे भी जब भोले बुलाते हैं तो कोई मुश्किल आती भी नहीं है और उनकी इच्छा के बिना तो पत्ता भी नहीं हिल पाता तो फिर आदमी की तो बिसात ही क्या है। सच में,“जेहि विधि राखे राम, तेहि विधि रहिए।
आश्रम ऐक्सप्रेस ट्रेन का तत्काल में रिज़र्बेशन कराया गया और टिकट कन्फर्म भी हो गये।
सभी जरूरी सामान और कपड़े अटेची और बैग में जमा लिये गये। देवम के पापा भी आज ऑफिस से दो बजे तक घर आ गये। देवम के पापा-मम्मी और देवम तैयार होकर लगभग ढाई बजे दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुँच गये।
रेलवे स्टेशन पहुँच कर देवम के पापा को ट्रेन और सीट का पता चलाने में कोई परेशानी नहीं हुई। एस-2 स्लीपर कोच में तीन बर्थ थीं, देवम परिवार की। सभी सामान सीट पर व्यवस्थित कर लिया। देवम खिड़की के पास में बैठ गया और वैसे भी बच्चों को तो खासकर खिड़की के पास बैठना ही अधिक अच्छा लगता है। गाड़ी चलने में तो अभी काफी देर थी पर पहले पहुँचना ठीक ही रहता है।
सामने वाली सीट पर दो सज्जन लगभग तीस-बत्तीस साल के होंगे, उन्हें पहुँचाने के लिये तीन चार लोग भी आये हुये थे। उनके पास सामान के नाम पर तो बस दो ब्रीफ-केस ही थे सो उन्होंने अपनी बर्थ पर ही रख लिये थे।
कुछ व्यक्तियों में चुम्बकीय-आकर्षण होता ही है। जिन्हें देख कर उनसे बात करने की इच्छा होती है और कोई व्यक्ति, जिसने आपका कुछ भी न बिगाड़ा हो, फिर भी उससे घृणा होती है और उससे दूर हट जाने की इच्छा होती है। मन की कैमिस्ट्री ही कुछ अलग होती है। ये तो मन ही जाने।
देवम का मिलनसार स्वभाव और आकर्षक व्यक्तित्व अपने आप ही सबको अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता रखता है। 
सामने वाले सज्जन ने देवम से पूछ ही लिया,  आप कहाँ जा रहे हैं ?
हम यहाँ से अहमदाबाद जायेंगे और फिर वहाँ से सोमनाथ, देव-दर्शन के लिये। देवम ने बताया।
और आप कहाँ जा रहे हैं, अंकल ? देवम ने पूछा।
हम भी यहाँ से अहमदाबाद जायेंगे और फिर वहाँ से मुम्बई जाना है। अंकल का उत्तर था।
क्या नाम है तुम्हारा ? बड़े प्यारे लगते हो।  उनमें से एक ने पूछा।
देवम, और आपका अंकल ? देवम ने उत्तर के साथ ही प्रश्न कर दिया।
मेरा नाम शिवपाल सिंह और इनका राजपाल सिंह  है और हम लोग मेरठ के रहने वाले हैं। उनमें से एक ने उत्तर दिया।
थोड़ी देर तक वार्तालाप का दौर चला। गाड़ी का सिगनल हुआ, गार्ड साहब ने झंडी दिखा कर सीटी बजाई और गाड़ी चल दी। देवम बाहर का मन मोहक दृश्य देखने लगा।
एक के बाद एक स्टेशन आते रहे और जाते रहे। गाड़ी की गति कभी धीमी कभी तेज। जिन्दगी की तरह, कभी धीमी और कभी तेज।
किसी स्टेशन पर दो मिनट तो कहीं दस मिनट रुकती और फिर चल देती। अपनी मंज़िल की ओर। सभी को अपनी-अपनी मंज़िल तक पहुँचाने के लिए। 
टी.सी. बाबू आये। सभी के टिकट चैक किये। सभी सही यात्री थे फालतू का कोई भी नहीं। थोड़े बहुत जो लोकल पैसिन्जर थे, वे भी उतर चुके थे।
दोसा स्टेशन पर गाड़ी रुकी तो सामने वाले शिवपाल अंकल प्लेटफार्म पर उतरे, बिजली के खम्भे के नीचे खड़ा एक आदमी, जो शायद इनका ही इन्तज़ार कर रहा था, से कुछ बात की और फिर उसके पास से बैग लेकर, अपनी सीट पर आकर बैठ गये। बैग को सीट के नीचे रख दिया। देवम को कुछ अटपटा सा लगा, शंका भी हुई। आखिर कौन था जो अंकल को अपना बैग देकर चला गया ?
गाड़ी अपनी मंज़िल की ओर पल-पल बढ़ती जा रही थी। आखिर उसे भी तो सभी को अपनी-अपनी मंज़िल तक पहँचाना था। कभी कोई छोटा स्टेशन आता, चाय-गरम, चाय-गरम तो कभी ठंडा पानी की आवाज आती और फिर गाड़ी की रफ्तार बढ़ती तो आवाज बन्द हो जाती। गतिशील गाड़ी दौड़ने लगती अपनी अगली मंज़िल की ओर।
गाड़ी जयपुर रुकी। यहाँ पर लगभग दस मिनट का स्टोपेज था। देवम के पापा गाड़ी से नीचे उतरे प्लेटफार्म पर थोड़ा चहल कदमी करने और कुछ नाश्ता लेने के लिए भी। 
देवम के मन में विचार आया कि वह पापा से अंकल-चिप्स लाने के लिए सामने वाले शिवपाल अंकल के मोबाइल से बोल दे। ताकि इनका मोबाइल नम्बर पापा के मोबाइल में आ जायेगा।
उसने बड़ी चतुराई से सामने वाले शिवपाल अंकल से कहा, अंकल, जरा एक फोन करूँ ? पापा को।
हाँ हाँ, क्यों नहीं। उन्होंने देवम को मोबाइल देते हुए कहा। 
देवम ने पापा को फोन करके कहा, हाँ हलो पापा, मैं देवम बोल रहा हूँ। एक अंकल-चिप्स का पैकिट भी लेते आना।
अच्छा, और कुछ तो नहीं, अपनी मम्मी से भी पूछ लो।  पापा ने पूछा।
नही, और कुछ नही, पापा बस। देवम ने कहा।
सामने वाले अंकल को हँसी भी आई और देवम की दूरदर्शिता अच्छी भी लगी। शायद मोबाइल फोन की महत्ता का ज्ञान हुआ हो। देवम ने अंकल को धन्यवाद दिया और उनका मोबाइल उन्हें वापस कर दिया।
थोड़ी देर में देवम के पापा आ चुके थे। नाश्ता भी आ गया था और देवम के अंकल-चिप्स भी आ गये थे। सभी ने नाश्ता किया। कुछ घर का लाया हुआ और कुछ अभी लाया हुआ।
कुछ देर आराम करने के बाद, सोने की तैयारी होने लगी। देवम ने सबसे नीचे वाली बर्थ पर सोना पसन्द किया। पापा और मम्मी ऊपर वाली बर्थों पर सो गये। सामने वाले भी अपनी-अपनी बर्थ पर सो गये। 
रात का लगभग दो बजे का समय हुआ होगा। कोई छोटा स्टेशन रहा होगा, शायद फालना। गाड़ी दो मिनट के लिए रुकी और फिर चल दी।
देवम ने देखा कि सामने वाली बर्थ वाले दोनों अंकल अपनी बर्थ पर नहीं थे। दोनों बर्थ खाली थीं और ना ही उनका कोई सामान था।
देवम के मन में शंका हुई। अगर बाथरूम जाना था तो एक जाता, दोनों का न होना और वह भी सामान के साथ। जाना तो उन्हें अहमदाबाद से आगे मुम्बई तक था, पर बीच में ही क्यों उतर  गये।
शंका का होना लाज़मी था। उसने सीट के नीचे झुक कर देखा तो होश ही उड़ गये। नीचे एक बैग रखा था जिसमें से टिक-टिक की आवाज आ रही है। और यह तो वही बैग था जिसे दोसा स्टेशन पर उस आदमी ने शिवपाल अंकल को दिया था। समझते देर न लगी। शायद बम्ब था।
उसने तुरन्त ही पापा-मम्मी को जगाया। उन्होंने देख कर निश्चय कर लिया कि यह बम्ब ही है। तब तक पास के यात्री भी जग चुके थे।
इसकी सूचना देवम के पापा ने टी.सी.बाबू को दी। आनन-फानन में टी.सी.बाबू ने गार्ड और ड्रायवर को सूचित किया। अब तक तो कोच के सभी यात्री जाग चुके थे। साथ ही आगे-पीछे के कोच में भी यह खबर आग की तरह फैल गई थी।  रेलवे स्टाफ को सूचना मिलते ही सब हरकत में आ गये। उन्होंने यात्रियों को शान्ति और धैर्य बनाऐ रखने का निवेदन भी किया।
उधर यह सूचना तुरन्त पास के रेलवे स्टेशन अजमेर, आबू रोड, जयपुर और अहमदाबाद को भेजी गई। ताकि शीघ्र से शीघ्र, हर सम्भव सहायता उपलब्ध कराई जा सके।
रेलवे स्टाफ ने ऐसा निर्णय लिया कि इस एस-2 कोच को काट कर अलग कर दिया जाये। ताकि यदि समय रहते बम्ब डिफ्यूज़ न किया जा सका, तो भी कम से कम जान हाँनि से तो बचा ही जा सके और बड़ी होनारत को टाला जा सके।
रेलवे स्टाफ ने एस-2 स्लीपिंग कोच के सभी यात्रियों को शान्ति से जल्दी से जल्दी एस-2 कोच को खाली कर पास वाले कोच एस-1 और एस-3 में शिफ्ट होने को कहा। सभी यात्रियों ने शीघ्रता से कोच को खाली कर दिया। जब तक एस-2 कोच खाली हुआ, गाड़ी रुक चुकी थी।
रेलवे स्टाफ ने एस-2 और एस-3 कोच को अलग कर, इन्जन को आगे बढ़ा कर एस-2 कोच को एस-1 से अलग कर दिया। इस प्रकार केवल एस-2 कोच को काट कर अलग कर दिया गया था ताकि बम्ब-ब्लास्ट होने पर, कम से कम जान-हाँनि तो न ही हो।
बाकी ट्रेन को आगे ले जाकर रोक दिया गया। बस इन्तज़ार था तो बस, बम्ब निरोधक दस्ते का। जो बम्ब को डिफ्यूज़ कर कोच को सुरक्षित कर सके। पर समय रहते घटना-स्थल पर ना तो बम्ब निरोधक दस्ता ही पहुँचा और ना ही कोई सहायता।
बौगी तो रेल विभाग के कर्मचारी और यात्रियों के सहयोग से खाली की जा चुकी थी। और कुछ ही क्षणों के बाद बौगी में जबरदस्त विस्फोट हुआ। विस्फोट बड़ा भयंकर था। ऐसा लगा कि कान के पर्दे ही फट गये हों। दिल दहला देने वाला विस्फोट था। दूर-दूर तक बौगी के टुकड़े बिखर गये थे। आग की लपटें तो जैसे आकाश को ही छूना चाहतीं थीं।   
ट्रेन दो हिस्सों में बटी हुई खड़ी थी और बीच में धूँ-धूँ कर के जल रहा था एस-2 कोच। पूरे कोच के परखच्चे इधर-उधर बिखर गए थे। बिलकुल तहस-नहस हो गया था स्लीपिंग कोच एस-2।
उस ऊपर वाले का लाख-लाख शुक्रिया था जो कि सभी यात्री सुरक्षित थे किसी का बाल-बाँका भी न हुआ था। और कोई भी हताहत नहीं हुआ था। नुकसान हुआ था तो केवल कोच का।
लोग बस उस अनजान बालक को लाख-लाख दुआऐं दे रहे थे जिसकी बदौलत कि वे आज जिन्दा थे। कल्पना करते ही उनके रौंगटे खड़े हो जाते।
यदि ऐसा न हुआ होता तो क्या हुआ होता ? शायद खाक हो चुके होते वे और न जाने कहाँ-कहाँ बिखरे पड़े होते उनके मांस के लोथड़े। कितने परिवारों का क्या-क्या हुआ होता, ये सब तो कल्पना के परे था सोच पाना भी।
सुबह होते-होते तो रेल सुरक्षा बल, बम्ब निरोधक दस्ते और आई.बी. की टीम घटना स्थल पर पहुँच चुकीं थीं।  पुलिस और आई.बी. की टीम ने आकर सभी परिस्थिति की जानकारी टी.सी. बाबू, गार्ड बाबू, रेलवे स्टाफ और ड्रायवर से प्राप्त की।
ए.टी.एस. और एन.आई.ए. की टीम ने जले हुए कोच का अध्ययन किया। शायद यह पता चलाने का प्रयास हो रहा हो कि बम्ब में कौन-सी सामिग्री का उपयोग किया गया है और इस ब्लास्ट के पीछे किस संगठन का हाथ हो सकता है। क्षति-ग्रस्त कोच अब एन.एस.जी. की निगरानी में था।
टी.सी. बाबू ने पुलिस, ए.टी.एस और आई.बी. के लोगों को देवम के पापा से मिलवाया। क्योंकि देवम के पापा और देवम ही एक मात्र ऐसे व्यक्ति थे जो कि आतंकवादियों के विषय में कुछ बता सकते थे।
देवम के पापा ने अपने मोबाइल में से आतंकवादियों का मोबाइल नम्बर ऑफीसर को बताया। जिस मोबाइल से देवम ने जयपुर में प्लेटफार्म से अंकल-चिप्स लाने के लिये पापा को फोन किया था। साथ ही वे जानकारियाँ दी जो उन्हें यात्रा के दौरान उनसे बातचीत करते समय मिल पाईं थीं। जो लोग इन्हें दिल्ली रेलवे स्टेशन पर छोड़ने आये थे, उनके विषय में भी बताया।
यह मोबाइल नम्बर आई.बी के लिये बहुत महत्वपूर्ण था। आई.बी. के ऑफीसर ने हैड-ऑफिस को तुरन्त ही इस मोबाइल नम्बर को ट्रैस करने का निर्देश दिया।
साथ ही पुलिस और टास्क-फोर्स को भी निर्देश दिया कि वे उन आतंकवादियों का पीछा करें। देवम और देवम के पापा के सहयोग से आतंकवादियों स्कैच भी बनवाया गया जिसके आधार पर उन्हें पकड़ा जा सके।
देवम ने पुलिस अफसर को बताया कि मुझे इन दोनों लोगों पर शक तो दोसा स्टेशन पर ही हो गया था। जब एक आदमी बैग को लेकर प्लेटफार्म पर बिजली के खम्भे के नीचे खड़ा था और शिवराज सिंह ने नीचे उतर कर, उस आदमी से बात की और बैग लेकर ट्रेन में आ गया। उसके बाद ये दोनों आदमी बहुत चौकन्ने हो गये थे। और सोने की तैयारी करने के बजाय सीट खोल कर बैठ गये थे।
इनका मोबाइल नम्बर लेने के लिए ही मैंने जयपुर में पापा को फोन किया था और मैं नाटक करने में सफल हो गया। मैं सोया नही, जागता रहा और सोने का नाटक करता रहा। मैं चोर नज़र से इनकी गतिविधियों को देखता रहा। जैसे ही ये दोनों फालना स्टेशन पर उतरे और गाड़ी चली, मैने इन्हें प्लेटफार्म पर जाते हुए देखा तो तुरन्त ही मैं समझ गया कि ये गाड़ी से उतर कर जा चुके हैं। जरूर कुछ गड़बड़ है। मैंने पापा को जगा कर सब कुछ बताया।    
मीडिया का भारी जमाबड़ा था घटना-स्थल पर। कोई प्रेस वाला, तो कोई चेनल वाला। तरह-तरह के इन्टरव्यू लिए जा रहे थे। मीडिया ने देवम का इन्टरव्यू लिया। तरह-तरह के प्रश्न देवम से पूछे गये। देवम ने मीडिया के सभी प्रश्नों के सन्तोषजनक उत्तर दिये।
देवम के पापा और देवम को पुलिस की विशेष सुरक्षा प्रदान की गई। पुलिस और आई.बी. का मानना था कि उनकी जान को खतरा हो सकता है। साथ ही उनसे फिलहाल आगे की यात्रा न करने का अनुरोध भी किया। देवम के पापा ने उनके प्रस्ताव को उचित समझा और सोमनाथ न जाने का निर्णय लिया।
पुलिस ने अपनी सुरक्षा के अन्तर्गत देवम और देवम के पापा-मम्मी को दिल्ली पहुँचाने की व्यवस्था की। साथ ही देवम के घर और सोसायटी में भी पुलिस-फोर्स की कड़ी सुरक्षा प्रदान की गई।
देवम को जो पुण्य-फल सोमनाथ में भोले बाबा के दर्शन करके प्राप्त नहीं हो पाता, उस फल से लाख गुना अधिक पुण्य-फल भोले शंकर ने भोले यात्रियों की जान बचवा कर देवम को दे दिया। शायद भोले बाबा यही चाहते हों, और देवम को उन्होंने इस पुण्य-कार्य का माध्यम बनाया हो। उनकी लीला तो वे ही जाने।
उधर पुलिस, टास्क फोर्स के साथ, आतंकवादियों के मोबाइल फोन के लोकेशन को ट्रेस करते हुए आतंकवादियों के पास तक पहुँच चुकी थी। आतंकवादियों को चारों ओर से घेरा जा चुका था।
दौनों ओर से फाइरिंग चालू हो गई थी। फाइरिंग दो पुलिस-कर्मी शहीद हो गये थे और एक आतंकवादी मारा जा चुका था। दो घण्टों के कड़े संघर्ष के बाद दूसरे आतंकवादी को जिन्दा पकड़ने में पुलिस सफल हो गई।
आतंकवादियों को उम्मीद भी न थी कि पुलिस इतनी जल्दी उन तक पहुँच जायेगी। शायद उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ होगा या नही, पर यह सत्य था कि यदि देवम के द्वारा दिया गया मोबाइल नम्बर पुलिस के पास नहीं होता तो शायद पुलिस आतंकवादियों तक कभी भी नहीं पहुँच सकती थी।
आई.जी. पुलिस और रेलवे स्टाफ ने देवम के इस कार्य की खूब-खूब सराहना की। आई.जी. पुलिस ने तो मीडिया को दिये गये अपने इन्टरव्यू में इस बात का उल्लेख भी किया और देवम की भूरि-भूरि प्रशंसा भी की।
बाद में पता चला कि वे दोनों शिवपाल और राजपाल नहीं थे वल्कि खूँख्वार आतंकवादी अज़मल खान और मंसूर अली थे। इनके तार मुम्बई बम्ब-ब्लास्ट से भी जुड़े हुए थे, ऐसा पुलिस का मानना था। इन दोनों आतंकवादियों की तो इंटरपोल को भी तलाश थी।
इनकी सूचना देने वाले को सरकार ने दो-दो लाख रुपये के इनाम भी घोषित किये हुए थे। देवम की चतुराई और दूरदर्शिता ने, एक को जिन्दा और एक को मुर्दा सरकार तक पहुँचा दिया।
खूँख्वार आतंकवादी मंसूर अली मुठभेड़ में मारा गया और अज़मल खान अब पुलिस की गिरफ्त में है।
दूसरे दिन सभी समाचार-पत्रों में जलती हुई बौगी के दृश्य थे और हैड लाइन थी, धूँ-धूँ जलती ट्रेन, चतुर बालक देवम ने बचाई लाखों जान। तो किसी पेपर की हैड-लाइन थी, बहादुर देवम की चतुराई से एक खूँख्वार आतंकवादी मारा गया और दूसरा पकड़ा गया। 
टी.वी. और चेनल वालों ने देवम के इन्टरव्यू को विशेष कबरेज़ के साथ प्रसारित किया।
कुछ दिनों के बाद पुलिस विभाग द्वारा देवम के सम्मान में एक समारोह रखा गया। जिसमें देवम को चार लाख रुपये का एक चैक और प्रशस्ति-पत्र आई.जी. द्वारा प्रदान किया गया। साथ ही उन्होंने बताया कि देवम का नाम उन बहादुर बच्चों की लिस्ट में शामिल करने के लिए सरकार को भेज दिया गया है जिन्हें गणतंत्र-दिवस समारोह में सम्मानित किया जाना है।
देवम बहुत खुश था और शायद उससे कई गुना अधिक देवम के मम्मी-पापा और दादा जी।
देवम ने पापा की अनुमति लेकर पैसे सोसायटी वैलफेयर-फंड में जमा करा दिये। ताकि यह धन-राशि समाज के गरीब एवं दलित-वर्ग के लोगों के उत्थान में काम आ सके। और प्रशस्ति-पत्र ड्रोइंग-रूम में टंगवा दिया।

***** 
...आनन्द विश्वास



Friday 11 January 2013

*देवम बगीचे में*


*देवम बगीचे में*

( *देवम बगीचे में * यह कहानी मेरी पुस्तक, *देवम ( बाल-उपन्यास )* से ली गई है जिसे डायमंड पॉकेट बुक्स से प्रकाशित किया गया है। यह  बाल-उपन्यास Dimond Books, FllipKart, HomeShop18, IndiaTimes, BookAdda, IndiaPlaza, InfiBeam, uRead, NBC India, ebay.in और  BuybooksIndia पर भी उपलब्ध है।)

*देवम बगीचे में*
 स्कूल की पढ़ाई और होम-वर्क के बाद, देवम को जब भी फुर्सत मिलती तो वह बगीचे में जरूर जाता। बगीचे के एक-एक पौधे के बारे में वह पूरी जानकारी रखता।
बगीचे में पहुँच कर तो, उसे ऐसा लगता जैसे वह अपने ही परिवार के बीच में है और गार्डन में बैठ कर, न जाने क्यूँ, उसे एक अजीव सा सुकून भी मिलता और अपनापन भी।
यूँ तो उसके ढेर सारे दोस्त हैं, सोसायटी में भी और स्कूल में भी। पर गार्डन में पहुँच कर तो वह गार्डन-गार्डन ही हो जाता।
वह कहता, पेड़-पौधों से अच्छा कोई दूसरा मित्र तो हो ही नहीं सकता। पेड़-पौधों के बिना हम अपने जीवन की कल्पना ही नहीं कर सकते। वे हमारे सच्चे मित्र ही नहीं बल्कि हमारे जीवन-दाता भी हैं।
इसीलिए वह सदैव उनके साथ मित्रता का व्यवहार करता और उनके साथ इस प्रकार बात-चीत करता जैसे कि वे पेड़-पौधे नहीं, बल्कि उसके मित्र हों और उसकी सभी बातों को वे भली-भाँति समझते भी हों।
कभी गुड़हल के फूल के पास जा कर, उनके हाल-चाल पूछता और कभी खुश हो कर गेंदे के गमले के पास जा कर बड़ी आत्मीयता से गुड-मोर्निंग कह कर उससे पूछता, कैसे हो ! गेंदालाल जी, सब कुछ ठीक-ठाक है ना। और कोई परेशानी तो नहीं है तुम्हें ? तुम भी क्या, सारे दिन गमले में बैठे-बैठे हँसते ही रहते हो। अरे भाई, कोई काम-धाम है या नहीं, तुम्हारे पास में ?
खैर कोई बात नहीं, गमले में बैठे-बैठे सब के गम लेते रहना और हँसते-हँसते सब को खुशियाँ बाँटते रहना भी तो, कोई आसान काम नहीं है। धन्य हो तुम और धन्य है तुम्हारा जीवन।
और फिर गेंदालाल जी भी तो मंद-मंद बहती शीतल सुगन्धित पवन से प्रभावित हो कर, हल्की सी सौम्य-मुस्कान को बिखेरते हुये हिल-हिल कर देवम की गुड-मोर्निंग को स्वीकार कर अपने आप को भाग्यशाली होने का गर्व अनुभव करते।
इसी तरह वह चम्पा, चमेली, वेला, मनी-प्लान्ट आदि के हाल-चाल पूछता और फिर सन-फ्लावर के पास जा कर कहता, तुम तो हमेशा ही सूरज दादा की ओर ही देखते रहते हो, कभी तो हम लोगों की ओर भी देख लिया करो। कैसा है ? सब ठीक है ना ? और फिर आगे बढ़ जाता।
गुलाब के फूल को देख कर तो देवम खुश-खुश हो जाता, और फिर कहता, अरे भाई, तुम ने ही तो मुझे हँसना सिखाया है। हर परिस्थिति में, हर पल, हर घड़ी, हँसते ही रहना तो कोई तुमसे सीखे।
काँटों के बीच में रह कर, अपने आप की चिन्ता किये बिना, सदा ही मुस्कुराते रहना तो अच्छे-अच्छों के वश की बात नहीं होती है।
मन में गम और अधरों पर मुस्कान, बस ये ही तो तुम्हारी पहचान है। न जाने कितने गम समेटे हो तुम अपने अंतस् में ? कितने दुखों के अम्बार लिये हो तुम ? भीगी-भीगी पलकें और बोझिल मन, फिर भी हँसते रहते, उपवन-उपवन। धन्य हो तुम और तुम्हारा जीवन ! सच में गुलाब, तुम तो महान हो। तुम्हें सलाम है।
काँटे तो तुम्हारे अपने ही हैं और अपने ही जब पीड़ा दें, तो फिर शिकवा किससे करें ? जब अपने ही आहत करें तो यह पीड़ा और भी ज्यादा दुखदायी हो जाती है, असहनीय कष्टदायक हो जाती है।
वैसे भी अपने ही तो हर पल, काँटों की तरह चुभते रहते हैं। कितने भाग्यशाली होते हैं वे लोग, जिनके अपने, अपने होते हैं। अपनापन होता हैं जिनमें, आत्मीयता होती है जिनके रोम-रोम में। जो अपनों का हित पहले और अपना हित बाद में सोचते हैं। मन गद्-गद् हो जाता है, ऐसी आत्मीयता को देख कर। आँखें भर आतीं हैं।
पर यहाँ तो उल्टी ही गंगा बहती है। यहाँ तो अपने ही पराये हैं और सिर्फ पराये ही नहीं, वल्कि पल-पल नोचते रहते हैं। दुख देने के नये-नये आविष्कार होते रहते हैं जिनके मन में। तो फिर, कैसा शिकवा ? कैसा गिला ?  किससे ? और क्यों ?
परायों को तो, एक बार को फिर भी दया आ जाती है और वे सहानुभूतिवश, काँटों से मुक्ति दिलाने के लिये, तुम्हें डाल से तोड़ कर अपने पास में रख लेते हैं। और काँटों से हमेशा-हमेशा के लिये मुक्ति दिला देते हैं।
पर यह क्या ? काँटों से मुक्ति, और वह भी जीवन की कीमत पर ? अरे ! यह तो सरासर सरेआम, हत्या है, कत्ल है, खुल्लम खुल्ला मौत है, ये कैसी मुक्ति ?
वाह ! क्या मजाक है ?  कैसी है मानसिकता ? अगर डाल से तोड़ना ही था तो काँटों को तोड़ कर अपने पास में रख लिया होता या फिर फैंक दिया होता और फूलों को निर्भय हो कर डाल पर खिलने दिया होता।
पर नहीं, स्वार्थ जो है ना ? मानव स्वभाव है, कुछ करने की, वह भी तो कुछ कीमत चाहता है। बिना स्वार्थ के आजकल, इस स्वार्थी संसार में, कौन मुँह खोलता है ? कौन कुछ करता है, दूसरों के लिये ? और करे भी, तो क्यों ?
काँटों और फूलों में से, अगर आपको ही चुनाव करना पड़े, तो शायद आप भी तो फूलों को ही प्राथमिकता देंगे ? काँटों को तो कौन अपने पास में रखना पसन्द करेगा ? खैर जाने भी दो न। संसार है, सब चलता है।
और तुलसी के गमलों के सामने पहुँच कर तो देवम नत-मस्तक ही हो जाता। बचपन में उसने किसी किताब में पढ़ा था कि तुलसी के पौधे में कीटनाशक शक्ति और वातावरण को शुद्ध करने की क्षमता होती है।
जिस घर में तुलसी का पौधा होता है वहाँ बीमारियाँ भी कम होती हैं। वैसे भी घर में तुलसी के पौधे का होना अत्यन्त शुभ माना जाता है और धार्मिक  दृष्टि से भी इसका विशेष महत्व होता है।
उसे मालूम है कि मम्मी रोज़ सुबह पूजा करने के बाद एक लोटा जल का तुलसी को अर्ध्य चढ़ाना कभी नहीं भूलतीं और वह भी स्कूल जाने से पहले तुलसी के दो पत्ते तो खा कर ही स्कूल जाता। ऐसा उसे उसके पापा ने बताया था।
उसके मन में ईश्वर के प्रति अपार आस्था और श्रद्धा है। संस्कार तो आखिर बच्चों को उनके माता-पिता, आसपास के समाज और वातावरण से ही मिलते हैं। जैसी संगत, वैसी रंगत। अच्छी संगति ही अच्छे संस्कारों के निर्माण की आधार-शिला होती है।
 रातरानी, मोगरा और लिली से हाय-हलो कर, जैसे ही वह छुईमुई की ओर आगे बढ़ता, वैसे ही वह मुर्झाने लगती।
तो वह कहता, अरे भाई, तुम मुझसे क्यों डरते हो ? मुझसे डरने की कोई जरूरत नहीं है। मैं तो तुम्हारा दोस्त ही हूँ तो फिर डरना कैसा ? और फिर अपनों से क्या शर्माना ? हमेशा खुश रहा करो। जीवन में सदैव हँसते रहो और खिलखिलाते रहो।
फिर कहता, अच्छा, शायद तुमको बड़े जोर से भूख लगी है। किसी ने तुम्हें पानी तक के लिये भी नहीं पूछा। ठीक है ना।
वह फिर बोला, अच्छा तो चलो, अब मैं तुम्हारे लिये खाने-पीने का इन्तजाम करता हूँ। कल पापा तुम्हारे लिये बड़ी अच्छी सी खाद ले कर आये हैं, मैं अभी लाता हूँ। पेट भर कर खा लेना। फिर नहीं कहना कि भूख लगी है।
तुम भी कैसे हो ? चुप चाप भूख-प्यास सब कुछ सहते रहते हो। कितने भोले भण्डारी हो ? भूख लगी हो तो भी कुछ नहीं बोलते। अरे भाई, बोलोगे नहीं तो कैसे खबर पड़ेगी कि तुम्हें भूख लगी है।
और फिर देखते ही देखते चालू हो जाता, देवम का बगीचे में सेवा-अभियान। हर गमले में वह थोड़ी-थोड़ी खाद डालता।
साथ ही साथ एक-एक गमले और पेड़-पोधों से पूछता भी, बोलो, और खाद चाहिये क्या ? और अगर भूल से भी कोई पत्ता या टहनी हिल गई तो बस समझो, हाँ। खाद के वितरण में देवम जरा भी कंजूसी नहीं करता।
खूब पेट भर कर खाओ। अरे, अगर खाओगे पिओगे नहीं तो काम कैसे करोगे। पूरी सृष्टी और जीवन को जीवित रखने का बेहद जरूरी काम जो तुमको करना होता है। सारे ब्रह्माण्ड को ऑक्सीजन जो देनी है तुमको।
इस प्रकार पूरे बगीचे में उसने सभी गमले और पेड़-पौधों में खाद डालने का काम पूरा किया।
खाद डालने के बाद फिर चालू हुआ पानी पिलाने का कार्यक्रम। बगीचे में लगे नल में पाइप को लगा कर सभी पौधों और गमलों में पानी डाला फिर लॉन में भी पानी का छिड़काव किया। पानी को छाँटने का काम तो देवम का फेवरेट काम है। और इसमें उसे मजा भी आता।
काफी देर से काम करते-करते देवम आराम करने के लिये लॉन में पड़ी कुर्सी पर बैठ गया। फिर उसे याद आया कि कल तो रविवार है और माली अंकल आने वाले हैं। वे मशीन से घास की कटिंग करने वाले हैं।
देवम ने घास से कहा, कल तो माली अंकल आने वाले हैं। आपके बाल बहुत बड़े हो गये हैं। आपके बालों की कटिंग होने वाली है। और फिर आपके बालों को नया लुक मिल जायेगा। आपका हेयर स्टाइल ही बदल जायेगा। अभी भारी-भारी सा लगता है फिर अच्छा हो जायेगा। हल्का-हल्का और मजेदार भी। इससे कोमलता भी बढ़ जायेगी। और फिर सब कुछ अच्छा-अच्छा।
और सुबह छोटी-छोटी हरी घास पर ओस की बूँदों पर नंगे पाँव चलने में तो मजा ही आ जायेगा। सुबह में तो ऐसा लगेगा जैसे कि हरी घास पर किसी ने सफेद चादर ही बिछा दी हो।
सवेरे-सवेरे तो बगीचे की शोभा देखते ही बनती है। चहचहाती हुईं चिड़ियाँ, कोयल की कुहु-कुहु और मन को मोह लेने वाली सुगंधित मन मोहक फूलों की सुगंध। और तो और मंद-मंद बहती शीतल सुगंधित शुद्ध पवन के तो कहने ही क्या ? और इन सबके अनुभव मात्र से ही उसका मन गार्डन-गार्डन हो जाता।
ओस की छोटी-छोटी बूँदों की कल्पना मात्र से ही देवम का मन सिहर उठता। सुबह पाँच बजे उठ कर नंगे पाँव हरी घास पर चलना देवम को बहुत ही अच्छा लगता। उसे सुबह का तो हमेशा इन्तज़ार ही रहता।
वह सोचता, कब सुबह हो और वह छोटी-छोटी हरी घास पर, ओस की बूँदों के ऊपर नंगे पाँव टहले। नंगे पाँव हरी घास की ओस की बूँदों पर टहलना आँखों के लिये लाभ दायी होता है। ऐसा उसे उसके दादा जी ने बताया था। 
चाँदनी रात में दादा जी के सान्निध्य में अन्त्याक्षरी की प्रतियोगिता का होना, बगीचे की अविस्मरणीय घटना है। अन्त्याक्षरी, जिसमें केवल रामचरित मानस, सूर, कबीर, तुलसी, जायसी, रहीम, रसखान आदि के दोहे, श्लोक, मुक्तक और कविताएँ ही होतीं। बाकी का फालतू कुछ भी नहीं।
फिल्मी गानों के लिये तो प्रतिबन्धित क्षेत्र होता। देवम के लिये तो यह सबसे अधिक प्रिय खेल होता। और इसी खेल का ही तो परिणाम है कि आज देवम को ढेर सारे दोहे, मुक्तक, कविताएँ और रामचरित मानस की चौपाइयाँ रटी पड़ी हैं।
मम्मी-पापा का साथ में होना तो देवम में उत्साह और ऊर्जा भरने के लिये पर्याप्त होता। असली ऊर्जा-स्रोत तो वे ही हैं। प्रेरणा-पुंज हैं वे देवम के।
और फिर शाम को चिड़िया-बल्ला, घास पर बैठ कर कैरम, लूडो, साँप-सीढी आदि खेलना, दादा जी के साथ गपशप करना, कहानियाँ और ज्ञान-वर्धक बातें सुनना कितना अच्छा अनुभव। और फिर लोट-पोट का तो मजा ही अलग है।
और फिर लौकी की वेल के पास जा कर धीरे से कहता, सुनो, आज शाम को मम्मी आपको लेने के लिये आयेगी, सभी दोस्तों से मिल लेना। फिर बाद में यह नहीं कहना कि बताया नहीं। ठीक है ना। अच्छा, तो अब मैं चलता हूँ। शाम को घर पर मिलेंगे।
बगीचे का काम पूरा करने के बाद देवम घर जा कर मम्मी को सब बातें बताता और मन ही मन खुश भी होता। मम्मी भी देवम की बातों को बड़ा ध्यान से सुनतीं और सदैव उसके मौलिक चिन्तन के लिये उसे प्रोत्साहित भी करती रहतीं।
मम्मी ने देवम की सभी बातें बड़े ध्यान से सुनी और फिर बोलीं, अच्छा अब चल हाथ-मुँह धो ले और थोड़ा बहुत नाश्ता तू भी तो कर ले। सुबह से भूखा है कुछ खाया नहीं। सब की चिन्ता करता फिरता है, कुछ अपनी भी तो चिन्ता कर लिया कर।
देवम ने हाथ-मुह धोकर मम्मी के हाथ का बना गरमा गरम नाश्ता किया और फिर अपना स्कूल का होम-वर्क करने  में व्यस्त हो गया।
और आज रविवार का दिन, देवम के लिये तो जैसे कुछ खास दिन ही होता है। सप्ताह भर के ढेर सारे काम जो हो जाते हैं, ऊपर से स्कूल का होमवर्क तो अलग।
इसके अलावा मम्मी-पापा के साथ भी रहने का समय भी तो उसे रविवार को ही तो मिल पाता है। बाकी दिनों में तो बस, आया राम, गया राम ही होता रहता। ये करो वो करो और बस इसी में पूरा सप्ताह कब खिसक जाता, पता ही नहीं चलता।
और आज तो माली अंकल भी आने वाले हैं। लगभग आठ बजे तक आ जायेंगे। कुछ नये पौधे भी ले कर आने वाले हैं और गार्डन की घास की कटिंग भी तो होनी है।
सुबह उठकर देवम नहा धोकर, नाश्ता कर ही पाया था कि माली अंकल की आवाज सुनाई दी।
आओ अंकल, बस आपका ही इंतज़ार कर रहा था।  देवम ने कहा।
हाँ, मुन्ना भैया हम आय गये। चलो बताओ का का करना है ?    माली ने कहा।
माली सदैव देवम को मुन्ना भैया कह कर ही पुकारता। जब माली अंकल काम करते तो देवम उनका हर तरह से ख्याल रखता और बिना चाय नाश्ता कराये वह कभी भी जाने नहीं देता।
क्या-क्या करना है, देवम के पापा ने माली को बुला कर समझा दिया। वैसे तो माली देवम की मम्मी के कॉलेज में माली का काम किया करता है सप्ताह में एक दो बार माली की जब जरूरत होती तब वह यहाँ आकर बगीचे की देखभाल भी कर जाता है।
और फिर आनन-फानन में बगीचे का काम शुरू हो गया। आदेश पापा का होता और सब काम देवम की देख-रेख में होता।
लगभग दो घण्टे तक गार्डन में काम चलता रहा। और देखते ही देखते गार्डन का हुलिया ही बदल गया। अब गार्डन अच्छा लगने लगा। जैसे पूरी काया ही पलट गई हो। माली अंकल ने नये-नये पौधे भी लगा दिये।
और काम पूरा होने के बाद देवम ने माली अंकल को चाय-नाश्ता कराया। देवम खुश था उसकी इच्छा के अनुसार उसका बगीचा तैयार हो गया था। माली अंकल के जाने के बाद देवम रविवार के अपने शेष कामों में व्यस्त हो गया।
*****
...आनन्द विश्वास