Sunday 10 February 2019

"ऐसे जग का सृजन करो, माँ"

अविरल वहे  प्रेम  की सरिता,
मानव - मानव   में  प्यार  हो।
फूलें-फलें   फूल   बगिया  के,
काँटों   का   हृदय  उदार  हो।

जिस मग में कन्टक हों पग-पग,
ऐसे  मग  का  हरण  करो, माँ।
ऐसे  जग का  सृजन  करो, माँ।

पर्वत  सागर  में    समता  हो,
भेद-भाव  का  नाम  नहीं  हो।
दौलत  के   पापी   हाथों   में,
बिकता  ना  ईमान  कहीं  हो।

लंका  में  सीता  को  भय  हो,
ऐसे  जग का  सृजन करो, माँ।
ऐसे  जग का  सृजन करो, माँ।

परहित  का  आदर्श  जहाँ हो,
घृणा-द्वेश-अभिमान  नहीं हो।
मन-वचन-कर्म का शासन हो,
सत्य जहाँ  बदनाम  नहीं हो।

जन-जन  में   फैले  खुशहाली,
घृणा अहम् का दमन करो माँ।
ऐसे  जग का सृजन  करो, माँ।

धन  में   विद्या  अग्रगण्य  हो,
सौम्य    मनुज    श्रृंगार   हो।
सरस्वती, दो  तेज किरण-सा,
हर   उपवन   उजियार   हो।

शीतल,स्वच्छ,समीर सुरभि हो,
उस उपवन का वपन करो, माँ।
ऐसे  जग का  सृजन करो, माँ।
-आनन्द विश्वास

Saturday 9 February 2019

"आया मधुऋतु का त्योहार"

खेत-खेत   में   सरसों  झूमेसर-सर  वहे  वयार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
धानी  रंग  से  रंगी धरा,
परिधान   वसन्ती  ओढ़े।
हर्षित  मन  ले लजवन्ती,
मुस्कान   वसन्ती   छोड़े।
चारों  ओर  वसन्ती  आभाहर्षित  हिया  हमार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
सूने-सूने  पतझड़  को  भी,
आज वसन्ती प्यार मिला।
प्यासे-प्यासे  से नयनों को,
जीवन का  आधार मिला।
मस्त  गगन हैमस्त  पवन है, मस्ती  का अम्बार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
ऐसा   लगे  वसन्ती  रंग  से,
धरा की हल्दी आज चढ़ी हो।
ऋतुराज ब्याहने  आ पहुँचा,
जाने की जल्दी आज पड़ी हो।
और कोकिला  कूँक-कूँककर, गाये मंगल ज्योनार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
पीली चूनर ओढ़ धरा अब,
कर  सोलह  श्रृंगार  चली।
गाँव-गाँव  में  गोरी  नाचें,
बाग-बाग  में  कली-कली।
या फिर  नाचें  शेषनाग  पर, नटवर  कृष्ण  मुरार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
-आनन्द विश्वास