Monday 4 July 2011

मैंने जाने गीत बिरह के


मैंने जाने गीत बिरह के

मैंने  जाने  गीत  बिरह  के, मधुमासों  की  आस  नहीं  है,
कदम-कदम पर मिली विवशता, साँसों में विश्वास नहीं है।
छल से छला गया है जीवन,
आजीवन का था समझौता।
लहरों  ने  पतवार छीन ली,
नैया  जाती  खाती   गोता।
किस सागर जा करूँ याचना, अब अधरों पर प्यास नहीं है,
मैंने  जाने   गीत  बिरह  के, मधुमासों  की  आस  नहीं  है।
मेरे   सीमित   वातायन  में,
अनजाने     किया    बसेरा।
प्रेम-भाव का  दिया जलाया,
आज बुझा, कर दिया अंधेरा।
कितने सागर  बह-बह निकलें, आँखों को  एहसास नहीं है,
मैंने  जाने   गीत  बिरह  के, मधुमासों  की  आस  नहीं  है।
मरुथल में  बहतीं दो नदियाँ,
कब तक प्यासा उर सींचेंगीं।
सागर  से  मिलने  को आतुर,
दर-दर पर कब तक भटकेंगीं।
तूफानों से  लड़-लड़  जी लूँ, इतनी  तो अब  साँस  नहीं है,
मैंने  जाने   गीत  बिरह  के, मधुमासों  की  आस  नहीं  है।
विश्वासों  की  लाश  लिये मैं,
कब तक सपनों के  संग खेलूँ।
सोई-सोई   सी   प्रतिमा  को,
सत्य समझ कब तक मैं बहलूँ।
मिथ्या जग में  सच हों सपने, मुझको  यह एहसास नहीं है,
मैंने  जाने   गीत  बिरह  के, मधुमासों  की  आस  नहीं  है।
                    
                                           ...आनन्द विश्वास

11 comments:

  1. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 05 - 07 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    साप्ताहिक काव्य मंच-- 53 ..चर्चा मंच 566



    कृपया टिप्पणी बॉक्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...

    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .

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  2. मेरे सीमित वातायन में,
    अनजाने आ किया बसेरा.
    प्रेम भाव का दिया जलाया,
    आज बुझा, कर दिया अँधेरा.
    bahut hi achhi rachna

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  3. अनुपम गीत है सर,
    सादर...

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  4. बहुत प्रवाहमयी सुन्दर गीत...

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  5. विश्वासों की लाश लिये मैं,
    कब तक सपनों के संग खेलूँ .
    सोई - सोई सी , प्रतिमा को,
    सत्य समझ, कब तक मैं बहलूँ .

    मिथ्या जग में सच हों सपने, मुझको यह अहसास नही है.

    ...बहुत सुन्दर रचना...शब्दों, भावों और लय का लाज़वाब संयोजन..

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  6. गुनगुना रही हूँ आपका गीत...
    दूर-दूर तक ऐसा सुंदर छंद दिखाई नहीं पढता...

    नमन मेरा...
    भाव विभोर हूँ बस..
    आभार...

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  7. विश्वासों की लाश लिये मैं,
    कब तक सपनों के संग खेलूँ .
    सोई - सोई सी , प्रतिमा को,
    सत्य समझ, कब तक मैं बहलूँ .

    Bahut Sunder Panktiyan...

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