Thursday 21 July 2011

सजनवा के गाँव चले


सजनवा के गाँव चले

सूरज    उगे      या     शाम    ढले,
मेरे  पाँव   सजनवा  के  गाँव  चले।
सपनों   की   रंगीन   दुनियाँ   लिये,
प्यासे  उर में  वसन्ती  तमन्ना  लिये।
मेरे  हँसते  अधर,  मेरे  बढ़ते  कदम,
अश्रुओं की सजीली सी लड़ियाँ लिये।
कोई      हँसे    या      कोई     जले,
मेरे  पाँव  सजनवा   के   गाँव  चले।
आज पहला मिलन है अनोंखा मिलन,
धीर धूलि  हुआ,  जाने  कैसी  लगन।
रात  होने   लगी,  साँस  खोने  लगी,
चाँद  तारे   चमकते   बहकते  नयन।
कोई     मिले     या     कोई     छले,
मेरे  पाँव   सजनवा  के   गाँव  चले।
दो हृदय का मिलन बन गया अब रुदन,
हैं  बिलखते  हृदय   तो  बरसते  नयन।
आत्मा   तो  मिली  जा  प्रखर  तेज  से,
है यहाँ पर बिरह तो, वहाँ  पर मिलन।
श्रेय     मिले     या       प्रेय     मिले,
मेरे   पाँव    सजनवा  के  गाँव   चले।
दुलहन   आत्मा   चल  पड़ी   देह   से,
दो  नयन  मिल गये  जा  परम गेह से।
माँ  की  ममता  लिये  देह  रोती रही,
मग  भिगोती  रही  प्यार  के  मेह  से।
ममता      हँसे     या     आँसू     झरे,
मेरे   पाँव   सजनवा  के   गाँव   चले।
       
                        ...आनन्द विश्वास



Tuesday 12 July 2011

जब सुनोगे गीत मेरे

    जब सुनोगे गीत मेरे

दर्द की  उपमा  बना मैं  जा रहा हूँ,
पीर की प्रतिमा बना मैं जा रहा हूँ।
दर्द  दर-दर  का  पिये  मैं,
कब  तलक   घुलता  रहूँ।
अग्नि  अंतस्   में   छुपाये,
कब   तलक  जलता  रहूँ।
वेदना  का  नीर  पी कर,
अश्रु    आँखों   से   बहा।
हिम-शिखर की रीति सा,
मैं कब  तलक गलता रहूँ।
तुम समझते  पल रहा हूँ, मैं  मगर,
दर्द  का  पलना बना मैं जा रहा हूँ।

पावसी  श्यामल  घटा में,
जब  सुनोगे   गीत   मेरे।
बदनसीबी   में  सिसकते,
साज  बिन   संगीत  मेरे।
याद  उर  में   पीर  बोये,
नीर  नयनों   में  संजोये।
दर्द  का   सागर  लिये हूँ,
रो   उठोगे   मीत    मेरे।
तुम  समझते  गा रहा  हूँ, मैं मगर,
दर्द की  गरिमा बना मैं जा रहा हूँ।

दर्द   पाया,   दर्द   गाया,
दर्द   को  हर  द्वार पाया।
दर्द   की    ऐसी  कहानी,
दर्द  हर दिल में  समाया।
 मैं    अछूता     रहूँ   कैसे,
 कोठरी  काजल  की  जैसे।
 सुकरात,ईशु,राम  शिव ने,
 दर्द  में   जीवन  बिताया।
दर्द में जन्मा, पला, और मर गया मैं,
दर्द  का  ओढ़े  कफ़न, मैं जा  रहा हूँ।

...आनन्द विश्वास

Thursday 7 July 2011

आया मधुऋतु का त्योहार

आया मधुऋतु का त्योहार
खेत-खेत   में   सरसों  झूमे,  सर-सर  वहे  वयार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
धानी  रंग  से  रंगी धरा,
परिधान   वसन्ती  ओढ़े।
हर्षित  मन  ले लजवन्ती,
मुस्कान   वसन्ती   छोड़े।
चारों  ओर  वसन्ती  आभा,  हर्षित  हिया  हमार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
सूने-सूने  पतझड़  को  भी,
आज वसन्ती प्यार मिला।
प्यासे-प्यासे  से नयनों को,
जीवन का  आधार मिला।
मस्त  गगन है,  मस्त  पवन है, मस्ती  का अम्बार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
ऐसा   लगे  वसन्ती  रंग  से,
धरा की हल्दी आज चढ़ी हो।
ऋतुराज ब्याहने  आ पहुँचा,
जाने की जल्दी आज पड़ी हो।
और कोकिला  कूँक-कूँक  कर, गाये मंगल ज्योनार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
पीली चूनर ओढ़ धरा अब,
कर  सोलह  श्रृंगार  चली।
गाँव-गाँव  में  गोरी  नाचें,
बाग-बाग  में  कली-कली।
या फिर  नाचें  शेषनाग  पर, नटवर  कृष्ण  मुरार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
                                          ....आनन्द विश्वास

https://www.youtube.com/watch?v=11a9ZCzYQ5w

पता..


पता    पूछते     हो,  पता   क्या   बता  दूँ ,
जगह   पूछते   हो,  जगह   क्या  बता  दूँ .
ढाई  गज  का  कफ़न,  बे-पता  कर  गया,
पता  का,  पता  क्या,  पता   क्या  बता दूँ .
   
                             .....आनन्द विश्वास   

तुम्हारे साथ में होगा जमाना.



ज़माने     की    सुनोगे    तो,   सुना    देगा   जमाना,

ज़माने    को   सुनाओगे,   तो    सुन   लेगा   जमाना,
अगर मन  की सुनोगे, और  फिर  मन  से  करोगे  तो,
तुम्हारे हाथ में होगा, तुम्हारे  साथ  में  होगा, जमाना.

                                               .......आनन्द विश्वास    

Wednesday 6 July 2011

वसंत


ये   वसंती    पर्व    सूना   हो   रहा   है,
दर्द   दिल  का   और  दूना  हो  रहा  है.
मंहगाई  ने तोड़ी  कमर है  आज ऐसी,
गाँव,  मुम्बई   और   पूना  हो  रहा  है.

                        ......आनन्द विश्वास.

Monday 4 July 2011

मैंने जाने गीत बिरह के


मैंने जाने गीत बिरह के

मैंने  जाने  गीत  बिरह  के, मधुमासों  की  आस  नहीं  है,
कदम-कदम पर मिली विवशता, साँसों में विश्वास नहीं है।
छल से छला गया है जीवन,
आजीवन का था समझौता।
लहरों  ने  पतवार छीन ली,
नैया  जाती  खाती   गोता।
किस सागर जा करूँ याचना, अब अधरों पर प्यास नहीं है,
मैंने  जाने   गीत  बिरह  के, मधुमासों  की  आस  नहीं  है।
मेरे   सीमित   वातायन  में,
अनजाने     किया    बसेरा।
प्रेम-भाव का  दिया जलाया,
आज बुझा, कर दिया अंधेरा।
कितने सागर  बह-बह निकलें, आँखों को  एहसास नहीं है,
मैंने  जाने   गीत  बिरह  के, मधुमासों  की  आस  नहीं  है।
मरुथल में  बहतीं दो नदियाँ,
कब तक प्यासा उर सींचेंगीं।
सागर  से  मिलने  को आतुर,
दर-दर पर कब तक भटकेंगीं।
तूफानों से  लड़-लड़  जी लूँ, इतनी  तो अब  साँस  नहीं है,
मैंने  जाने   गीत  बिरह  के, मधुमासों  की  आस  नहीं  है।
विश्वासों  की  लाश  लिये मैं,
कब तक सपनों के  संग खेलूँ।
सोई-सोई   सी   प्रतिमा  को,
सत्य समझ कब तक मैं बहलूँ।
मिथ्या जग में  सच हों सपने, मुझको  यह एहसास नहीं है,
मैंने  जाने   गीत  बिरह  के, मधुमासों  की  आस  नहीं  है।
                    
                                           ...आनन्द विश्वास